अम्बिकानगर-अम्ब कॉलोनी समीप रेलवे-स्टेशन क्रासिंग ब्रिज व कमांडर होम गार्डज कम्पनी कार्यालय अम्ब तहसील अम्ब-177203 जिला ऊना-हिमाचल प्रदेश।
*देवभूमि न्यूज 24.इन*
उस समय किताबों का प्रचलन बहुत कम हुआ करता था। पाठ्यक्रम की किताबें सहेजने तक ही इति श्री मान ली जाती थी। वह अनुभवी शिक्षकों का स्वर्ण युग भी था। स्कूल में शैक्षणिक ढांचे को सुदृढ करवाने में किताबों की दुनिया के अतिरिक्त इन गुरूजनों की भूमिका आज भी यथावत बनी हुई है। आकाश में सप्त ऋषि मंडल ध्रुव तारे की समीप रहा करता है। ऐसे ही स्कूल में इन गुरुजनों का सप्त ऋषि मंडल शिष्यों के लिए जबरदस्त प्रेरणादायक बना हुआ था। स्कूली पाठ्यक्रम के अतिरिक्त यह गुरुजन शिष्यों में भावी भविष्य की नैतिक शिक्षा,राष्ट्रीय चरित्रता , रोजगारपरक की बहु- आयामी सिद्धियों का संचरण करने में जुटे हुए थे। इन गुरुजनों में सर्व प्रथम बुनियादी शिक्षा का सूत्रपात करवाने वाले महामना श्री चंद्र मणीं जी(चंड-महात्मा जी) , उर्दू मास्टर क्रमश: गंगासागर जी, नागर देव जी सेहली(तुंगल),टेक चंद जी,हरिकृष्ण जी, हीरालाल शर्मा जी,धनदेव भारद्वाज जी,मुकुंद राम जी,मास्टर खेमचंद जी ,प्रकाश चंद दीक्षित जी,ओ0डी0 गुप्ता जी, परमदेव सैणीं जी (सैण मोहल्ला),परमदेव सैणीं जी,(सिंहां-बल्ह घाटी)अग्रणी श्रेणीं के समकालीन थे। हालांकि गायत्री दत्त जी , हुताषण शास्त्री जी, व्यास देव जी, ओंकार दास जी, ओमादत्त जी,जगदीश मित्र जी,भवानी दत्त जी,आचार्य रूप चंद शास्त्री जी ,ताराचंद जी,चैतन्य शर्मा जी,नरपत सिंह राणा जी, डाक्टर कमल प्यासा जी, मोहनी शर्मा पुराणीं मंडी,शशि प्रभा जी, वेद कुमारी कपूर जी, रमेश जी (मैथ टीचर)विनोद बहल,दिनेश कपूर जी,पुष्पा शर्मा जी ( हिंदी अध्यापिका,विद्या मल्होत्रा जी,आशा हांडा जी, शकुंतला जी,मनसा टंडन जी, पुष्पा शर्मा जी,(टारना माता हिल्स) पुस्तकालय प्रभारी एवं एल0आर0टी0 कुसम लता जी (स्नेह लता जी)लतिका गोयल जी,धर्मपाल गुप्ता जी, पीताम्बर लाल जी, शारीरिक शिक्षा अध्यापक क्रमश: जगत सिंह जी,चिंतामणी जी,गोपाल दास गोपाली जी, राजेन्द्र राजू जी,अम्बी जी,सैणीं जी,परमदेव सैणीं जी,विद्यासागर जी,गरीबदास जी, ड्राईंग मास्टर राजेन्द्र राजू जी पड्डल, ड्राईंगमास्टर शांति स्वरूप जी,समेत अनेकों गुरूजनों का यह अविस्मरणीय दौर था।

यही नहीं हेडमास्टरों में राजेन्द्र अरोड़ा जी,भूपेंद्र पाल जी, तेजतर्रार डी0एन0 कौल जी (टिपरु हेडमास्टर जी )भी सभी के लिए अविस्मरणीय है।यह सभी गुरूजन इतने जबरदस्त मनोवैज्ञानिक थे कि शिष्यों का चेहरा पढकर उसकी सारी गतिविघियों का खाका प्रस्तुत कर देते थे। पचास साल से ज्यादातर समय व्यतीत होने उपरांत आज भी उनके द्वारा शिष्यों के बारे किया गया आकलन अथवा भविष्यपुराण शतप्रतिशत सटीक बैठता है। बहुत सारे शिष्यों को आज भी महसूस होता है कि यह सचमुच अलौकिक शैक्षणिक दौर था। बहुत सारे गुरूजनों ने तो दीर्घायु बनकर सरकारी स्कूली सेवाकाल से ज्यादा सेवानिवृत्त होने उपरांत दीर्घकालिक पैंशनभोगी बनकर एक जबरदस्त रिकार्ड भी सफलतापूर्वक स्थापित किया है। आचार्य रुपचंद शास्त्री जी का कथन था कि जितना दीर्घकालीन उन्होंने पैशन ली है। शायद शिष्यजन उतनी सरकारी नौकरी भी नहीं कर पाओगे ? इन गुरूजनों ने जीवनलाल को लेकर आंकलन किया था कि वह एक ड्राईवर से जयादा कुछ नहीं बनेगा?जीवनलाल में आने वाली घटनाएं पहले ही परछाईयां छोड़ना शुरु कर देती है। जीवनलाल के जीवन का घटनाक्रम बहुत ही विचित्रता लिए हुए था। मिट्टी के गारे की चिनाई का बना सौ साल पुराना मकान जिसकी छतों से बरसात में अत्याधिक पानी टपकने लगता था। घर की रसोई के रखे सारे बर्तन व खाली डिब्बे हर कमरे की छत से टपकते पानी को कदापि रोक नहीं पाते थे।पानी के अनवरत टपकने से पहली मंजिल का कच्चा मिट्टी बरामदा जल थल हो जाता था। नतीजतन मिट्टी के नीचे इमारती लकड़ी देवदार के शहतीर, कड़ियां, निचले बरामदे के लकड़ी स्तम्भ दीमक लगने से संक्रमित होकर कच्चे पड़कर गिरने के कगार पर हो गए थे। लकड़ी की चारदीवारी पर लगे मोटे तख्ते भी कमजोर पड़कर बाहर की तरफ निकलते साफ दिखाई देते थे। जीवनलाल घर के हालात बदलना चाहता था। उसने निश्चय कर लिया था कि गुरूजी ने ड्राईवर बनने का ही रोजगारपरक रास्ता सुझाया था।
अत: जीवनलाल ने विना वक्त गवाए ड्राईवरी सीखना चालू कर दिया था। हेमचंद उस्ताद ड्राईवरी सिखाते थे। जीवनलाल पकका घड़ा था किंतु उस्ताद जीवनलाल ने चपत मार मार कर घड़ दिया था। जरा सी सड़क कटाई पर चूक होती तो जीवन लाल के सिर पर हेमचंद उस्ताद का धौल पड़ जाता था। जीवनलाल ट्रेंड ड्राईवर बन गया था। कालांतर में वह अच्छी आजीविका अर्जित कर गुजर बसर करने लगा था।
कुछ महीने पहले लम्बी दूरी की बस दिल्ली- हमीरपुर रुट पर थी
इस फीचर के लेखाकार को हमीरपुर जाना था। बस में बैठा तो सभी जीवनलाल को ड्राईवर साहब कहकर संबोधित कर रहे थे। बंगाणा में इंस्पैक्टर बस चैकिंग करने चढ़े तो वह भी ड्राईवर साहब ही कहकर पुकार रहे थे। भोटा में बस अल्पकालिक चायपान के ठहराव के लिए रूकी थी। हम भी चाय पकौड़े का लुत्फ उठा रहे थे। जब दुकानदार को चाय पकौड़े के पैसे देने लगा तो ड्राईवर साहब जीवनलाल ने हाथ पकड़कर रोक दिया था।
उसका कहना था कि वह मिडल स्टैंडरड में मास्टर खेमचंद जी के पास पढ़ने वाला सहपाठी है। श्री खेमचंद जी ,गुरूजी ने कहा था कि वह ड्राईवर ही बनेगा?
इसलिए नीति ने अपना खेल रचाया है किंतु यह नैतिक आचरण की शिक्षा गुरूजन खेमचंद का ही कमाल है कि हिमाचल परिवहन निगम में उसकी ड्राईवर साहब के बतौर अच्छी खासी पहचान बनी हुई है।
हम बस में बैठकर गंभीर चिंतन में खो चुके थे।
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