देवभूमि न्यूज 24.इन
हिमाचल प्रदेश में पर्यटन अपने हिमालयी परिदृश्यों और हिल-स्टेशनों के लिए लोकप्रिय है। और यहां रॉक क्लाइम्बिंग, माउंटेन बाइकिंग, पैराग्लाइडिंग, ट्रेकिंग और राफ्टिंग जैसी आउटडोर गतिविधियाँ लोकप्रिय आकर्षण हैं। राज्य संस्कृति और परंपराओं में भी समृद्ध है, जहाँ बाज़ारों में पश्मीना शॉल, हिमाचली टोपियाँ और अन्य स्थानीय उत्पाद भी मिलते हैं। लेकिन आए दिन या बरसात के मौसम में इस हिमालय क्षेत्र में बहुत ही अत्यधिक भूस्खलन और मिट्टी के कटाव की घटनाएं सामने आती हैं। यह घटनाएं चाहे प्राकृतिक हो या मानव निर्मित गतिविधियों के कारण उत्पन्न हो न केवल मनुष्य जाति की रोजमर्रा की जिंदगी परंतु प्रकृति को भी नुकसान पहुंचती है। परंतु अब हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा उचित कदम उठाते हुए इसमें अभूतपूर्व उन्नति वह उपलब्धि हासिल की है: अगर विशेष उदाहरण की बात करें तो हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर में हाल ही में विश्वकर्मा चौक के साथ लगती पहाड़ी पर पिछले लंबे समय से जारी भूस्खलन को रोकने में लोक निर्माण विभाग कामयाब हो गया है। इसके साथ ही इस तरह की तकनीक को सोलन से शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे भी देखा जा सकता है। इसमें एक तरह से रॉक बोल्टिंग तकनीक का इस्तेमाल करते हुए पहाड़ी को मजबूती दी जाती है, और आप कह सकते हैं कि जन सुरक्षा के मध्य नजर लोक निर्माण विभाग ने शानदार काम किया है। हालांकि आने वाला मानसून इसकी परीक्षा रहेगा परंतु पहाड़ी को मजबूती देने का काम पूरा कर लिया गया है, और इस तरह से यातायात को सुचारू रूप से संचालित किया जा सकता है। मंडी जिला में विश्वकर्मा मंदिर के ऊपर वाली पहाड़ी पिछले दो-तीन सालों से काफी ज्यादा दर्क रही थी और भूस्खलन होने के कारण यातायात को प्रभावित भी कर रही थी। इसके ऊपर बने घरों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो गया व इस भूस्खलन को रोकने के लिए मंडी प्रशासन ने भूगर्भीय वैज्ञानिकों की भी सहायता ली थी। लोक निर्माण विभाग अब इस पहाड़ी को बांधने में कामयाब रहे हैं, यह काम इतना आसान नहीं था। इसमें मिट्टी की जांच से लेकर गहराई में रॉक का पता लगाते हुए एक तरह से इसे लोहे से बांधा गया है। इसमें टर्फ टेनफोर्स मैट करने के साथ ही ड्रेनेज सिस्टम भी बनाया गया है साथ ही धरातल तल पर छोटे-छोटे मजबूत दीवारों का निर्माण किया गया है, जिससे कि इसे भविष्य में और अधिक मजबूती प्रदान की जा सके।
हिमाचल प्रदेश में वर्तमान में राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई : 2592 किलोमीटर है:
- पीडब्ल्यूडी = 1238 किलोमीटर
- एनएचएआई = 785 किलोमीटर
- बीआरओ = 569 किलोमीटर
हिमाचल प्रदेश में एनएच अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा क्रियान्वित की जा रही चार लेन की परियोजना: - परवाणू-सोलन-शिमला-ढली एनएच-22 (नया एनएच-05) : कार्य प्रगति पर है।
- पिंजौर-बद्दी-नालागढ़ एनएच-21ए (नया एनएच-105) : डीपीआर तैयार हो रही है।
- शिमला-मटौर एनएच-88 : डीपीआर तैयार हो रही है।
- पठानकोट-चक्की-मंडी एनएच-20 : डीपीआर तैयार हो रही है।
- गरमौरा-सवारघाट-मंडी-मनाली एनएच-21 : कार्य प्रगति पर है।
प्रकृति आधारित समाधान का क्रियान्वयन: हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन शमन और ढलान स्थिरीकरण के लिए प्राकृतिक-आधारित समाधान को पारंपरिक इंजीनियरिंग विधियों के लिए टिकाऊ, लागत प्रभावी और पारिस्थितिक रूप से ध्वनि विकल्प या पूरक के रूप में देखा जा रहा है। राज्य के पहाड़ी इलाके, नाजुक भूविज्ञान और जलवायु परिवर्तन और मानवजनित दबाव (जैसे वनों की कटाई, सड़क निर्माण और जलविद्युत विकास) के कारण बढ़ती भेद्यता को देखते हुए, एन. बी. एस. इस क्षेत्र के लिए विशेष रूप से उपयुक्त हैं।
हिमाचल प्रदेश के लिए प्रमुख प्राकृतिक-आधारित समाधान - वनस्पति ढलान स्थिरीकरण जैव इंजीनियरिंग तकनीक जैसे मिट्टी को पकड़ने और कटाव को कम करने के लिए गहरी जड़ वाली देशी घास, झाड़ियाँ और पेड़ (जैसे, वेटिवर, बांस, सैलिक्स, डोडोनिया, विटेक्स) का उपयोग करना। अपवाह को धीमा करने और तलछट को फंसाने के लिए वनस्पति का उपयोग करके समोच्च हेजरो और लाइव चेक डैम।
लाभ: मिट्टी का प्रतिधारण, बेहतर जल निकासी, सौंदर्य वृद्धि, आवास निर्माण।
चुनौतियाँ: वनस्पति स्थापित करने के लिए समय की आवश्यकता होती है; अतिरिक्त उपायों के बिना खड़ी या बहुत अस्थिर ढलानों में कम प्रभावी। - कृषि वानिकी और ढलान खेती मजबूत जड़ प्रणाली वाले बारहमासी प्रजातियों या फलों के पेड़ों के साथ अंतर-फसल।
ढलान ढाल और मिट्टी की गति को कम करने के लिए वनस्पति आवरण के साथ संयुक्त सीढ़ीदार खेती।
लाभ: आजीविका का समर्थन करता है, मिट्टी की उर्वरता में सुधार करता है, कटाव को नियंत्रित करता है।
चुनौतियाँ: किसानों की सहमति और दीर्घकालिक रखरखाव की आवश्यकता होती है। - वर्षा जल संचयन और अपवाह प्रबंधन सतह अपवाह को धीमा करने और भूजल पुनर्भरण को बढ़ाने के लिए रिसाव गड्ढों, खाइयों और छोटे चेक बांधों की स्थापना। जल विज्ञान संतुलन बनाए रखने के लिए झरनों और स्थानीय जल निकायों की बहाली। लाभ: ढलान संतृप्ति को कम करता है, भारी वर्षा जैसे भूस्खलन ट्रिगर को कम करता है। चुनौतियाँ: सामुदायिक भागीदारी और उचित जल विज्ञान योजना की आवश्यकता होती है।
- वन और चरागाह बहाली
क्षरित ढलानों पर देशी, गहरी जड़ों वाली प्रजातियों के साथ पुनर्वनीकरण। आक्रामक प्रजातियों पर नियंत्रण जो ढलान की भेद्यता को बढ़ा सकती हैं (जैसे, लैंटाना कैमरा)। लाभ: ढलान की अखंडता, जैव विविधता और जल प्रतिधारण को बढ़ाता है। चुनौतियाँ: लंबी गर्भावधि और चरागाह दबावों के प्रति संवेदनशीलता। - समुदाय-आधारित वाटरशेड प्रबंधन एकीकृत वाटरशेड विकास दृष्टिकोण जो मृदा संरक्षण, जल संचयन और आजीविका विविधीकरण को जोड़ते हैं।
ढलान प्रबंधन के लिए स्थानीय समुदायों के साथ भागीदारी योजना। लाभ: स्थानीय हितधारकों को सशक्त बनाता है, लचीलापन बनाता है और स्थिरता को बढ़ाता है। चुनौतियाँ: प्रभावी संस्थागत ढाँचे और क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। हिमाचल प्रदेश में एनबीएस परियोजनाओं के उदाहरण
भूस्खलन-प्रवण ढलानों पर वनरोपण के लिए सेवानिवृत्त सैन्य कर्मियों को शामिल करने वाली इको-टास्क फोर्स (ईटीएफ) पहल। कांगड़ा में कंडी वाटरशेड परियोजना – समोच्च ट्रेंचिंग, वनरोपण और अपवाह नियंत्रण को लागू किया गया JICA-सहायता प्राप्त परियोजनाएँ जिनमें ढलान स्थिरीकरण में बायोइंजीनियरिंग तकनीकें शामिल हैं। नीति और संस्थागत समर्थन हिमाचल प्रदेश वन विभाग और आपदा प्रबंधन प्राधिकरण तेजी से एनबीएस को शमन ढांचे में एकीकृत कर रहे हैं। राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन (एनएमएचएस) और राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (एनएपी) जैसी राष्ट्रीय पहलों के साथ संरेखण। विश्व बैंक और एडीबी द्वारा वित्त पोषित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में अक्सर पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) के हिस्से के रूप में एनबीएस घटक शामिल होते हैं। हिमाचल में प्रभावी एनबीएस के लिए सिफारिशें हाइब्रिड समाधानों में पारंपरिक इंजीनियरिंग विधियों के साथ एन.बी.एस. को एकीकृत करें।
स्थानीय ज्ञान का उपयोग करें और पंचायतों और ग्राम वन समितियों को शामिल करें।
ढलान स्थिरीकरण के लिए देशी प्रजातियों की प्रभावशीलता पर अनुसंधान और निगरानी को बढ़ावा दें। दीर्घकालिक वित्तपोषण और रखरखाव योजनाएँ सुनिश्चित करें। हस्तक्षेपों को प्राथमिकता देने के लिए भूस्खलन जोखिम क्षेत्रीकरण मानचित्र विकसित करें।
राजन कुमार शर्मा
आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ उपायुक्त कार्यालय, ऊना हिमाचल प्रदेश ।