देवभूमि न्यूज 24.इन
मौसम विज्ञानियों के लिए मानसून के दस्तक की घोषणा करना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जो कई मापदंडों पर आधारित होती है. भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने इसके लिए कुछ मानक तय किए हैं. सबसे पहले, मानसून की शुरुआत को केरल से जोड़ा जाता है, क्योंकि यह दक्षिण-पश्चिम मानसून का पहला पड़ाव है. IMD के अनुसार, निम्नलिखित मापदंडों को पूरा करने पर मानसून की आधिकारिक घोषणा की जाती है:
केरल के 14 मौसम स्टेशनों में से कम से कम 60% स्टेशनों पर लगातार दो दिनों तक 2.5 मिलीमीटर से अधिक बारिश होने पर मौसम विज्ञान मानसून के पहुंचने का ऐलान कर देते हैं. वैज्ञानिकों की नजर दक्षिण-पश्चिम दिशा से चलने वाली नम और ठंडी हवाओं पर भी होती है, जो मानसून की विशेषता होती हैं. ये हवाएं अरब सागर से मानसून की नमी को लेकर आती हैं.
इसके अलावा वायुमंडलीय दबाव और तापमान में बदलाव भी अहम भूमिका निभाते हैं. 850 hPa के स्तर पर पश्चिमी हवाओं की गति और दिशा भी एक मापदंड है. ऐसे में जब ये सभी कारक किसी एक क्षेत्र में एक साथ मिलते हैं, तो मौसम विभाग आधिकारिक तौर पर मानसून के आगमन की घोषणा कर देता है.
केरल में मानसून की घोषणा के बाद IMD इसकी प्रगति को ट्रैक करता है. इसके लिए मौसम रडार, सैटेलाइट इमेजरी और ग्राउंड स्टेशनों से डेटा का उपयोग किया जाता है.
2025 में मानसून की तेज रफ्तार की वजह क्या है?

1990 के बाद यह पहली बार है कि मानसून इतनी जल्दी महाराष्ट्र में पहुंचा है. आम तौर पर, मानसून केरल में 1 जून के आसपास दस्तक देता है और महाराष्ट्र में 10-15 जून तक पहुंचता है. लेकिन इस बार यह 24 मई को केरल पहुंचा और महज दो दिनों में, यानी 26 मई को महाराष्ट्र में प्रवेश कर गया.
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, इस तेज रफ्तार के पीछे कई कारण हैं…
- अरब सागर में साइक्लोनिक सर्कुलेशन : अरब सागर में एक मजबूत साइक्लोनिक सर्कुलेशन ने मानसून की हवाओं को तेजी से आगे बढ़ाया. यह सर्कुलेशन नमी को तेजी से पश्चिमी तट की ओर ले गया.
- लो प्रेशर सिस्टम : बंगाल की खाड़ी में एक लो प्रेशर सिस्टम ने मानसून की धारा को मजबूत किया, जिससे इसकी गति बढ़ी.
- एल नीनो-ला नीना इफेक्ट : इस साल ला नीना की स्थिति प्रभावी है, जो मानसून को मजबूत और तेज बनाती है. ला नीना प्रशांत महासागर में ठंडे पानी की स्थिति को दर्शाता है, जो भारत में अच्छी बारिश से जुड़ा है.
- प्री-मानसून गतिविधियां : मई की शुरुआत से ही दक्षिण भारत में प्री-मानसून बारिश ने मौसम को अनुकूल बनाया, जिससे मानसून की प्रगति आसान हो गई.