दो जून की रोटी

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देवभूमि न्यूज 24.इन

दो जून की रोटी, वैसे तो यह एक साधारण सा मुहावरा है, लेकिन इसका जून माह से कोई संबंध नहीं।
यह भी अपुष्ट है कि यह कब और कहां से प्रचलित हुआ, लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ कुछ अलग ही है।
बचपन में पढ़ी गई किताबों में हमने ऐसे-ऐसे मुहावरे पढ़े जिनका अर्थ जीवन की गहराइयों तक जाता है। ऐसा ही एक मुहावरा दो जून की रोटी भी है।
विक्रम विवि के कुलानुशासक शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि यह भाषा का रूढ़ प्रयोग है।
मोटे तौर पर माना जाए तो यह करीब 600 साल पहले से प्रचलन में है।
किसी घटनाक्रम की विशेषता बताने के लिए मुहावरों को जोड़कर प्रयोग में लाया जाता था। यह क्रम आज तक जारी है।
हास्य-व्यंग्य के अंतरराष्ट्रीय कवि दिनेश दिग्गज से पूछा गया कि हम दो मार्च या दो अप्रैल की रोटी क्यों नहीं कहते, उन्होंने कहा- क्योंकि दो जून की रोटी का अर्थ कोई महीना नहीं, बल्कि दो समय (सुबह-शाम) का खाना होता है।
साधारण शब्दों में इसका अर्थ कड़ी मेहनत के बाद भी लोगों को दो समय का खाना नसीब नहीं होना, होता है।
संस्कृत विद्वान शास्त्री कौशलेंद्रदास ने बताया कि दो जून अवधि भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ वक्त या समय होता है। इससे ही यह कहावत अस्तित्व में आई है।