सोमभद्रा-स्वां नदी बाजार समीप अम्बिकानगर-अम्ब कलौनी रेलवे स्टेशन रोड अम्ब-177203ऊना हिमाचल प्रदेश।
*देवभूमि न्यूज 24.इन*
पुरानी मांडव्य नगरी में प्राची से उगता सूरज एक नया संदेश लेकर आता है। सूरज के दस्तक देते ही सभी वाशिंदों में अपनी अपनी सामर्थ्य से दिनचर्या का श्री गणेश हो जाता है। हर्ष हलधर अपने पुराने बैलों को लेकर वासणी-रोपा-स्कोर-रेहड़धार से सटे पुश्तैनी खेतों को जोतने के लिए चल पड़ता है।घर से बाहर निकलते ही पुरानी मांडव्य नगरी की प्राचीन बावड़ियों पर स्थानीय लोगों ने स्नान करना शुरू कर दिया है। प्राचीन शिवालय समीप पीने के पानी की अत्यंत निर्मल बावड़ी पर दो-चार घरों की महिलाएं घरेलू रसोई कामकाज हेतु बावड़ी पर पानी लेने आई है। वह हर्ष को बैलों को ले जाते देख बोलती है। “हर्षे ! कब तक खेतों को जोतता रहेगा? मेरी सलाह मान और देख! नई मांडव्य ऋषि नगरी में व्यापार बाज़ार बढ़ता जा रहा है। वहां पर कोई दुकान क्यों नहीं कर लेता?”हर्ष ने देखा कि पड़ोसी चाची जगदम्बा हर बार मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना शुरू कर देती है। हालांकि चाची बोलती तो उसकी भलाई के लिए ही बोलती है। हर्ष ने चाची को बतलाया कि वहां पर कोई दुकान नहीं है। खुले में सामान बेचने में बहुत मेहनत मुशक्कत करनी पड़ेगी। चाची जगदम्बा हार मानने वाली नहीं थी। उसने हर्ष से वार्तालाप शुरू कर दिया था। हर्ष ने भी बैलों को पानी पिलाकर शिवालय समीप प्रांगण में पाषाण के नंदीगण की टांगों से रस्सी को फेरघेर कर बांध दिया था। चाची बोली मूर्ख हर्षे! हर रोज काफल बेचने वाले अपने अपने किरडू-टोकरियों में काफल और फल-सब्जियों को बेचने आते हैं। उनकी नई मांडव्य नगरी में कौन सी दुकान है? “तेरे को दस साल पत्थरीली भूमि को जोतते हो गये। सारी कनक और मक्की तो आवारा पशुओं द्वारा उजाड़ कर चट कर जाते हैं। तू कौन सा वहां हर पल रात दिन पहरा देता है?”
हर्ष ने जान लिया था कि अबकी बार चाची जगदम्बा का कोई जबाव नहीं दे पाऊंगा। उसने बहाना बनाया कि चाची इस बार उसने अरबी, अदरक-लहसुन और प्याज भी बीज दिया है । इन फसलों को जंगली खरगोश, हिरणों, बंदरों व आवारा पशुओं से कोई नुक्सान नहीं है।
” जगदम्बा चाची ने भी हामी भर ली थी कि चल तू कहता है तो मान जाती हूं।” मैं तो तेरे विवाह की धाम (पहाड़ी चावलों की व्यंजनों से भरपूर दावत) खाने का इंतजार कर रही हूं।।
हर्ष ने चाची जगदम्बा को पक्का आश्वासन दिया था कि वह उसको जल्दी ही विवाह करके धाम जरूर खिलायेगा।
हर्ष बैलों को लेकर वासनी गांव की ओर चल दिया था। बाकी की पड़ोसन महिलाओं ने चाची जगदम्बा को पूछा कि क्या अभी इस लड़के की शादी नहीं हुई है? यह तो तीस साल का लगने लगा है। जगदम्बा चाची ने बतलाया कि यह अभी पच्चीस साल का भी नहीं हुआ है। पारीवारिक जिम्मेदारी के बोझ तले दब कर रह गया है। अभी दो साल पहले ही इसके पिता स्वर्गवासी हो चुके हैं। वह अब्बल दर्जे के हलवाईयों में गिने जाते थे। कबीलदारी बहुत ज्यादा था। भाईयों से सम्पत्ति विवाद खत्म होने का नाम नहीं लेते थे। हर वक्त घरेलू कलह बरकरार रहता था। एक भाई घर बार छोड़कर कर अन्यत्र चला गया था। हर्ष के पिताजी ने बहुत से ग्रामीण व शहरी मेलों में दुकानें लगाकर धनोपार्जन किया था। जीवन के अन्तिम दिनों में असाध्य बीमारी ने घेरा तो वह शरीर को निष्प्राण करके ही गई थी। हालांकि वह अपनी तीनों बेटियों का विवाह करने में कामयाब हो गए थे। हर्ष को मैट्रिक बड़ी मुश्किल से करा पाये थे। कुछ लोगों ने हर्ष को परामर्श दिया था कि वह आई0टी0आई0 में किसी इलैक्ट्रीशियन अथवा रैफरीजरैशन ट्रेड में डिप्लोमा कोर्स कर ले किन्तु वह खेती-बाड़ी और रसोईया बन कर आजीविका कमाने लगा था।
एक पड़ोसन ने जगदम्बा चाची से पूछा कि अगर बात आगे बढ़ाई जाए तो मेरी बेटी जया ने टेलरिंग का कोर्स कर रखा है। घर पर विभिन्न किस्मों के कपड़ों की सिलाई की माहिर हैं। बाईस साल उम्र हो चुकी है। उसको कोई घर वर नहीं मिल रहा है। जहां भी बात चलती है तो कम पढ़ी लिखी होने से बात सिरे नहीं चढ़ती। अगर बात चलती है तो धन-दहेज आड़े आ जाता है। अगर जगदम्बा चाची आप इस हर्ष लड़के से हमारी जया के रिश्ते की बात सिरे चढा दें तो मैं कहती हूं कि दोनों ही आबाद जीवन जीने के हकदार बन जायेंगे। मेरे मायके वालों ने रिवालसर रोड पर एक बीघा जमीन मुझे दी है। वहां पर हर्ष और जया का नया मकान बन जायेगा। हर्ष वहां पर दुकान बना कर अपना कोई छोटा मोटा कारोबार भी चला सकता है। और हां जगदम्बा चाची हमारी बेटी जया विभिन्न आचारों को डालने की भी माहिर हैं। वह सेप्पू बड़ी बनाने की भी बहुत बड़ी महारत रखती है। “मैं कहती हूं कि अगर यह दोनों हर्ष और जया आचार बनाने और सेप्पू बड़ी की दुकान भी खोलेंगे तो भी जरुर कामयाब हो जायेंगे ?” जगदम्बा चाची ने जया की मां को आश्वासन दिया था कि वह अवश्य ही हर्ष की माताजी से इस बावत बातचीत करेगी।
आज हर्ष का मन भविष्य को लेकर उद्वेलित हो गया था। उसने दो खेतों में हल चलाकर मक्की का बीज बो दिया था। वह वासनी रोपा के उच्च शिखर से नीचे पंचवक्त्र मंदिर समीप बहती व्यास दरिया की लहरों को देखकर ना जाने कहां खो जाता था! वह नई मांडव्य नगरी को रसाती बसाती व्यास नदी से प्रेरणा लेने की गुहार करने लगता था।उसे पक्का विश्वास होने लगा था कि व्यास गंगा की धाराएं मांडव्य ऋषि का ही तपोबल है। यह व्यास की पावन धाराएं नये और पुराने मांडव्य नगर का इतिहास रचाने की साक्षी है। सर्वप्रथम प्राचीन मांडव्य ऋषि नगरी में ही सेन वंशज राजाओं की रियासत चलती थी। श्री त्रिलोकनाथ मंदिर भगवती नारदा-शारदा जी ही राजाओं की कुलदेवी मानी जाती थी। हर्ष के पुर्वज भी पुश्तैनी तौर पर वासनी,रोपा, स्कोर-रेहड़धार में राजाओं के आश्रय में पुरोहित-पांडत्य व रसोईयों का काम सम्पादित करने लगे थे।व्यास नदी पार जब राजा अजवर सेन जी ने पंद्रहवीं शताब्दी में स्वयंम्भू बावा भूतनाथ जी को साकार एवं स्थापित करवाया तो एक नई मांडव्य नगरी बसाई गई थी। इस नगरी को बसाने की चश्मदीद श्री व्यास गंगा नदी ही है। हर्ष बारम्बार श्री मांडव्य ऋषि की तपस्थली में अनवरत बहती व्यास नदी से अरदास करने लगा था कि हे व्यास मैय्या गंगा आप ही कामधेनु सप्त द्वीप बसुन्धरा होकर नये -पुराने मांडव्य नगर को सर सब्ज करती आ रही है। आप ही कोई मार्गदर्शन कर मुझ अज्ञानी का मार्गदर्शन करा सभी पारिवारिक झमेलों से निजात दिला एक नया संचार करवाने में पूर्ण रूपेण सक्षम है। हर्ष बखूबी जानता है कि व्यास नदी जिसे पौराणिक नाम विपाशा के नाम से भी जाना जाता है। एकदम व्यास नदी की लहरों में तेजी आ गई थी। हालांकि यह तीव्र संवेग रोहतांग, मनाली, कुल्लू में पहाड़ों पर पिघलती बर्फ से जलस्तर बढ़ा रहा था। हर्ष को तो लग रहा था कि व्यासा नदी मैया ने उसकी मनोवांछित फलादेश देने की पुकार सचमुच सुन ली है। उसने संकल्प लिया था कि वह घर पर हलवा प्रसाद बनाकर अगले गुरूवार को व्यास नदी की पावन लहरों में भोग लगाकर एक आशा का दीपदान अवश्य करने जायेगा। हर्ष को भली-भांति मालूम था कि कोई भी काम शुरू करने से पहले उसके पिताजी मांडव्य ऋषि की तपस्थली में अनवरत बहती व्यास गंगा नदी में वीरवार को पीला हलवा प्रसाद बनाकर अवश्य चढ़ाकर दीप-दान भी करते थे। यह हर्ष का भी अटल विश्वास था कि माता पवित्र व्यास नदी उसके सभी कष्टों का अवश्य ही निराकरण करा मनोवांछित सिद्धी प्रदान करेगी। वह दूरदराज बाड़ी गुमाणू तक बहती व्यास नदी की पावन धाराओं का कोटि-कोटि नमन करता जा रहा था। शायद पौराणिक विपाशा नदी ने उसकी फरियाद सुनकर उसे नये श्री मांडव्य नगर में रचाने बसाने का प्राकृतिक संकेत दे दिया था।
वह सोचता कि अब माताजी भी बूढ़ी हो चुकी है। घर परिवार में आज भी चाचा-चाची सम्पत्ति विवाद समाप्त नहीं होने देते हैं। कोर्ट-कचहरी के मुकदमों से हर्ष सचमुच टूट चुका था। वह वासनी गांव से नूतन माडव्य नगर की ओर नजर दौड़ाता फिर चिंतन करता कि जगदम्बा चाची जी ठीक कहती है। उसे नई मांडव्य ऋषि नगरी में किसी कारोबारी के यहां कोई काम सीखना चाहिए या अपनी कोई छोटी मोटी रेहड़ी-फड़ी लगानी चाहिए? कभी कभी हर्ष के दिमाग में चलता कि यहां वासनी-रोपा-सकोर-रेहड़धार की फल सब्जियां इकट्ठा करके उन्हें बाजार ले जाकर बेचा जाये?
हर्ष के मन में बहुत सारे विचारों ने एक साथ जन्म ले लिया था। वह सांयकाल चोहट्टा-सेरी बाजार की परिक्रमा करने गया था। वहां पर उसने देखा था कि काफी ग्रामीण क्षेत्रों से बेरोजगार फल सब्जियां इत्यादि रेहड़ी-फड़ी और खोखों में बेचा करते हैं। उसने देखा कि वह भी बड़ी आसानी से फल सब्जियां इत्यादि बेच सकता है। उसने भी अपने लिए जगह तलाश कर ली थी। घर पर माताजी से आज्ञा प्राप्त करने गया तो वहां पड़ोसन चाची जगदम्बा को देखकर हैरान हुआ था। दरअसल चाची जगदम्बा तो जया का विवाह हर्ष से करने का प्रस्ताव लेकर आई थी। हर्ष की माताजी जयवन्ती और जया की माताजी सरला के मायके रिवालसर समीप थे। दोनों एक साथ पढ़े थे। यह हर्ष और जया का रिश्ता पक्का करने का एक शुभकारी संकेत था। जगदम्बा चाची एक दिन जयवन्ती को जया की माताजी सरला के घर पर ले गई थी। वहां पर सर्व गुण संपन्न जया की कढ़ाई सिलाई व सलीकेदार गतिविधियों से जयवन्ती बहुत प्रभावित हो गई थी। जया देखने में भी सुंदर थी। अतः जयवन्ती ने हामी भर दी थी कि उसे जया को अपनी पुत्र बधु बनाने में कोई एतराज़ नहीं है। हर्ष की जन्म कुंडली जब पंडित देशबंधु जी ने जया से मिलाई तो 36 गुण पूरे के पूरे मिलते थे। अब इस शादी को रोकने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था। सर्द नवरात्रों में नूतन मांडव्य ऋषि नगर जनपद की श्यामा काली टारना माता जी मन्दिर में एक सादे समारोह में जया और हर्ष का विवाह सम्पन्न करा दिया गया था। जया की माताजी सरला ने पड़ोसन चाची जगदम्बा को बचन दिया था कि हर्ष और जया के विवाह पर वह मायके से मिली रिवालसर रोड की एक बीघा जमीन हर्ष को कारोबार चलाने के लिए दान कर देगी। जया की माताजी ने यह एक बीघा जमीन हर्ष और जया को भेंट कर दी थी। हर्ष ने जल्दी ही इस नई जमीन पर प्रधानमंत्री रोजगार योजना के अन्तर्गत एक लाख रुपए का कर्ज लेकर दुकान मकान बनाकर काम शुरू कर दिया था। जया ने एक सिलाई केन्द्र खोलकर टेलरिंग हाऊस बना दिया था। यहां पर काफी मुनाफा होने लगा था। हर्ष ने भी दैनिकोपयोगी वस्तुओं के साथ साथ फल सब्जियां इत्यादि विविध वस्तुओं का कारोबार चमका दिया था। पांच साल में ही प्रधानमंत्री रोजगार ऋण चुकता करने में वह कामयाब हो गया था। अब वह अपनी माताजी जयवन्ती को भी रिवालसर रोड नये मकान में ले आया था। पुरानी मांडव्य नगरी में चल रहे पुराने पुश्तैनी विवादों को भी विराम चिह्न लग गया था। थोड़े अंतराल में जया और हर्ष ने दस बीघा कृषि योग्य उपजाऊ जमीन तलयाहड़ गांव समीप भी खरीद ली थी। आजकल यहां पशुपालन,डेयरी फार्म, मुर्गी पालन पोल्ट्री फार्म भी कामयाब हो कर खूब चल रहा है।
- * *