मधुर-स्मृतियां: शिलाई व द्राबिल 25 वर्ष बाद आज फिर यही दोहराया,मैडम जी फिर कब आओगे……..

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जी हां मेरा स्कूल द्राबिल जहां मंदिर की घण्टियाँ व स्कूल की घण्टी होती है एकाकार-मैडम सीमा बोस

(यह लेख प्रेरणादायक ओर भावपूर्ण विवरण शिक्षकों और छात्रों के बीच के सम्बन्धो के महत्व को दर्शाता है यह लेख बच्चों के जीवन मे सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित करता है-सम्पादक)

*देवभूमि न्यूज 24.इन*

हिमाचल के पहाड़ों की ओट में प्रकृति की गोद में जहाँ सूर्य की किरणों की लालिमा मन्दिर की मूर्ति को चरण- स्पर्श करती है, खेड़ा पीपल के पत्ते स्वर्ण- रशिम की तरह चमकते
अपनी ओर आकर्षित करते है मेरा राजकीय पाठशाला द्राविल स्कूल जी हाँ मेरा स्कूल जहाँ मन्दिर की घंटियाँ और विद्यालय की घन्टी एकाकार होती है, प्रात-काल चिडियो की चहक दूर दूर से ट्रांजिस्टर के साथ मधुरम ध्वनि एफ एम और चारों रास्तों से लेकर विद्यालय पढ़ने की ऊंची-नीची पहाड़ियों से स्कूल आते बच्चों में पढ़ने की लगन

अपने जीवन साथी के साथ स्कूल ज्वाइन करना ही था एक मन घबरा रहा था शहर छोड़ कैसे
अजनबी गाँव में अन्जान लोगों के साथ कितने वर्ष अकेले रहना है, मैं अकेली कहाँ थी? मेरे साथ तो माँ सरस्वती का आर्शीवाद मेरी बेटी का भविष्य, पति का सहयोग और सबकी अनुभूतियाँ थी

कब प्यार ने प्रेम का रूप ले लिया पता ही नही चला मोह और प्रेम में त्याग नाम है यह अन्तर अब समझ आया जब अगली सुबह मकान मालिक कल्याण जी की पत्नी और छोटे-छोटे बच्चे मेरा परिवार और मायका था कर्मभूमि मेरा विद्यालय आने पर चारों तरफ सूखे बेजान धरती अपना कार्य को अंजाम दिया छोटे – छोटे विद्यार्थियों को शवेत सैनिक बनाकर छोटे छोटे पौधे लगाए पहली महिला अध्यापिका, कार्यरत होने के कारण कब में बच्चों की प्रेरक ! और सीमा उनकी आवश्यकता बन गई देख कर वो मुझे संवरने लगे और में उन बच्चों को देखकर लगे संवरने लगें,

उन बच्चों के शिक्षा की तपस्या में निखरने लगी

मैं नयी-नयी प्रार्थना खेल और नये-नये बच्चों की सहायता से बंजर भूमि पर पौधे पनपने लगें, और धीरे धीरे में उनके साथ पलने लगी, अब वहा न जाने कितने पौधे छायादार वृक्ष बनकर मेरे फूल फूल हवा और छाया दे रहे है पता ही नही चला कि कब 5 वर्ष बीत गए टीचर्स और बच्चो की भावभीनी विदाई का समय आ गया बच्चों के आलिंगन मैडम जी मत जाओं जी फिर कब आओगे ? मैडम इन शब्दों ने मुझे भाव विभोर कर दिया यह शब्द आज भी मुझे दुबारा आने के लिए प्रेरित करते है

मधुर-स्मृतियों के चिन्ह तो मन मस्तिष्क अंकित है और रहेगें आज 25 वर्षों बाद फिर उस बच्चे ने मुझसे यही कहाँ – मैडम जी कब आओगे?

समय एक ऐसी गाड़ी है, जिसमें कोई ब्रेक नहीं और…. रिवर्स गियर भी नहीं वक्त सबको मिलता है…

जिंदगी बदलने के लियें, पर जिंदगी दुबारा नही मिलती, वक्त बदलने के लिये ……!!

दूरे निगाहों से आंसू बहाता है कोई ! कैसे न जाऊ में मुझको बुलाता है कोई !!

रुके तो चाँद जैसी चलें तो हवाओं जैसी. वो शिक्षिका ही है, जो धूप में छाँव जैसी।

द्राविल स्कूल और शिलाई स्कूलके मेरे बच्चों के लिए तुम्हारी

मैडम सीमा बोस हिन्दी अध्यापिका