देवभूमि न्यूज 24.इन
पिछले 11 सालों में देश में चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठ रहे हैं। एक तरफ भाजपा संघ की केंद्र सरकार ने निष्पक्ष चुनाव आयोग के आयुक्त तैनात नहीं किए हैं या कहें चुनाव आयुक्त निष्पक्षता से चुनाव करवाने में विफल रहे हैं। 2024 लोकसभा चुनाव और इसके बाद के हरियाणा महाराष्ट्र चुनाव में EVM और वोटर लिस्ट में वोटर के नाम काटने और नए नाम जोड़ने पर सवाल उठे हैं। और ये ज्यादातर यहां भाजपा संघ की प्रदेश सरकारें थीं वहां हुआ है। भाजपा संघ चुनावों में बेतहाशा पैसा इस्तेमाल करती रही है और इसमें इलेक्ट्रोल बॉन्ड जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध घोषित किया है इसके लगभग 9000 करोड़ से ज्यादा चंदा उगाही भी शामिल है। महाराष्ट्र में तो ठीक चुनाव के वक्त भाजपा संघ के एक कद्दावर नेता भी करोड़ों रुपए लोगों को बांटते हुए पकड़े गए थे। यह वास्तविकता है कि आज ज्यादातर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में करोड़ों खर्च होते हैं जबकि चुनाव आचार संहिता में एक विधानसभा क्षेत्र में 30 से 50 लाख रुपए के बीच एक प्रत्याशी खर्च कर सकता है। उदाहरण के लिए हम हिमाचल प्रदेश की फतेहपुर विधानसभा से 2007 से चुनाव लड़ रहे हैं और हमने 4 आम विधानसभा चुनाव और 2 उप चुनाव लड़े हैं।

2017 चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी ने 5 करोड़ के आस पास खर्च किए और 2021 के उप चुनाव और 2022 आम चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी ने 10 करोड़ के लगभग खर्च किए। कांग्रेस के प्रत्याशी ने भी चुनाव आचार संहिता में तह सीमा से लाखों में ज्यादा खर्च किया है। मजे की बात है कि ये लोग जब चुनाव में हुए खर्चे का हिसाब देते हैं तो 30 लाख रुपए की बजाए 5 से दस लाख का ही हिसाब देते हैं या उतना खर्च बताते हैं जितना उन्हें पार्टी से फंड मिलता है। हम खुद 3 से 4 लाख रुपए खर्च करते रहे हैं और इसका ईमानदारी से हिसाब देते हैं।
अब चुनाव आयोग से कोई पूछे या हम पूछ रहे हैं कि चुनाव आचार संहिता का मतलब क्या है क्या ये केवल खाना पूर्ति है। इस खर्च में पार्टी कितना खर्च करेगी इसकी कोई सीमा तह नहीं है। भाजपा आज सबसे ज्यादा अमीर पार्टी है वे लोकसभा और विधानसभाओं में बहुत ज्यादा पैसा खर्च करते हैं वोटरों को लुभाते हैं मीडिया का बहुत नजायज इस्तेमाल हो रहा है। 2019 लोकसभा में तो भाजपा संघ ने नमो टीवी बिना किसी इजाजत के पूरे लोकसभा चुनाव के समय चलाया और फिर इसका कोई अता पता नहीं। नमो तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ही कहा जाता है इसका मतलब है यह प्रधानमंत्री द्वारा या उनके किसी विश्वासपात्र ने ही चलाया है। क्या चुनाव आयोग सोया हुआ था। प्रश्न उठता है।
पिपक्ष के नेता राहुल गांधी बिहार चुनाव से ठीक पहले चुनाव आयोग को आगाह कर रहे हैं कि भाजपा संघ की प्रदेश सरकारें वोटर लिस्ट से छेड़ छाड़ कर चुनाव जीत रही हैं जो कि बिल्कुल चुनावों को मैच फिक्सिंग की श्रेणी में लाता है इसके लिए चुनाव आयोग को जवाबदेह देश ठहरा रहा है। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने चुनाव आयोग के आयुक्तों की तैनाती के लिए जो तीन सदस्य कमेटी सुप्रीम कोर्ट ने तह की थी उसे बदल दिया। इस कमेटी में पहले प्रधानमंत्री लोकसभा में विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शामिल थे उसे बदल कर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की जगह कैबिनेट के मंत्री को जोड़ा गया है इससे सरकार की मंशा पर संदेह है कि वे अपनी मर्जी का आयुक्त तैनात कर चुनावों में अपने हिसाब से अपने पक्ष में निर्णय चाहते हैं।
होना तो यह चाहिए था कि चुनाव आयोग को जिन महाराष्ट्र की 82 विधानसभा में वोटर बढ़ाने का विपक्ष के नेता ने जिक्र किया है और इन्होंने यानी कांग्रेस पार्टी के साथ उद्धव ठाकरे की शिव सेना और शरद पवार की NCP ने चुनाव आयोग को लिखित शिकायत भी की है प्रॉपर जांच होती और इन पार्टियों को जांच में पूरा मौका दिया जाता तब माना जाता कि चुनाव आयोग अपने निष्पक्ष यानी फ्री एंड फेयर चुनाव करवाने के दायत्व पर खरे उतरे हैं। ऐसे ही मनघड़ंत जवाब देना चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर बहुत बड़े सवाल खड़े कर रहे हैं।
विपक्ष के नेता द्वारा चुनावों में धांधली के आरोपों की जांच करवाने की जगह भाजपा के सरकार के मंत्री अनर्गल बातें कर देश वासियों को गुमराह कर रहे हैं इससे न तो चुनाव आयोग और न ही भाजपा संघ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार निष्पक्ष चुनाव करवाने के दायत्व से मुंह मोड़ सकते हैं देश को इन्हें जवाब देने ही होंगे।
डॉ अशोक कुमार सोमल
स्वराज सत्याग्रही
लोकतांत्रिक राष्ट्रनिर्माण अभियान