,अम्बिकानगर-अम्ब कॉलोनी समीप रेलवे-स्टेशन क्रासिंग ब्रिज व कमांडर होम गार्डज कम्पनी कार्यालय अम्ब तहसील उपमंडल अम्ब-177203 जिला ऊना-हिमाचल प्रदेश।
देवभूमि न्यूज 24.इन
गुज्जरों की आवाजों की गूंज सिंहल (सिल्ह) जंगलो से दुलची-टीहरी तक गूंजारित हो जाती थी। पोहाल जिन्हें आम लोक प्रचलित भाषा में गडरिया के नाम से बेहतर जाना जाता है। इन गुज्जर-गडरियों की कर्मभूमि यह वीयवान जंगल और चुनिन्दा गांव हुआ करते थे।गांव की घाटी की यात्रा का मनमोहक वातावरण होने लगता है। आज भी इस यात्रा के चुनिंदा पड़ाव आते है। इन विभिन्न पड़ावों की यादों की बड़ी लम्बी फेहरिस्त बरकरार है। गांव के बाबाजी रघुनन्दन सुनाते आयें है कि जब कभी गांव से शहर का रुख करना होता तो पिछले कल पूरी तैयारी कर ली जाती थी। पहले-पहल तो गांव की पगडण्डी से पैदल रास्ता तय करना होता था। पहला पड़ाव तो कटौला नामक गांव आता था। टीहरी गांव के आदि ब्रह्मा देवता की देहरी पर मत्था टेकने से यात्रा शुरू करना शुभकारी माना जाता था। टीहरी के जंगलों से निकलते हुए भालू,बाघ, घोरड, जंगली मुर्गों, सैहल-खरगोश प्राय मिल जाना साधारण प्रक्रिया का हिस्सा था। जिगती-लगशाल, दुलची गांवों में गुज्जरों का अपने पशु-मवेशियों, भेड़- बकरियों सहित महीनों का लम्बा डेरा डाला जाता था। बाबा रघुनन्दन जी सभी गतिविघियों से भली भांति सुपरिचित थे। जब घोड़ों का रास्ता आबाद हुआ तो यह यात्रा मार्ग कटौला तक सर्व सुलभ बन गया था। रघुनन्दन बाबा जी ने धर्मपत्नी राजो को लींगड़ का साग तैयार करने को कहा था। लींगड़ का साग सिल्ह के जंगलों में बहुतायत से पाया जाता है।

लींगड़ का साग एक सप्ताह तक तरो-ताजा बना रहता है बशर्ते इसे अच्छी तरह तालकर, उबाल कर और मिर्च मसालों का यथाविधि स्वादिष्ट बनाया जाए। दूसरी प्राकृतिक सब्जी गुच्छी यहां पहाड़ों में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। अधिक मात्रा में उपलब्ध होने पर इसे सुखाकर कनस्तर में सुरक्षित रख लिया जाता है। इससे सारे साल का गुजर बसर आसानी से हो जाता था। रघुनन्दन बाबा जी ने आज घोड़े पर घी,खोया के चार-पांच कनस्तर, गुच्छी का बड़ा थैला, लींगड साग की बोरी लाद ली थी। दोनों रघुनन्दन बाबाजी और धर्म पत्नी राजो नगर जाने के लिए सुबह तैयार बैठे थे। उसी समय उनका पोता गोपाल आ पहुंचा था। उसने दादाजी रघुनन्दन से जिद्द की थी कि वह हमेशा नगर जाने से टाल देते है। अब तो स्कूल में दो महीनों की बरसात की छुट्टियों के चलते वह मानने वाला नहीं थी। गोपाल की जाने की हठ के आगे किसी के रोकने की हिम्मत नहीं थी। गोपाल कटौला स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ा करता था। नित्य प्रति टीहरी गांव से कटौला स्कूल का सफर पैदल तय करना पड़ता था। दादा दादी जी ने गोपाल को साथ लेकर चलने की हामी भरी तो उसका चेहरा खिल उठा था।
इस यात्रा का पहला पड़ाव कटौला था। पुराने कटौले में खत्री लाला परसराम की पुश्तैनी दुकान थी। लाला परसराम नें रघुनन्दन को सारा सामान घोड़े से उतार कर उसे बेचने के लिए राजी करने की पुरजोर कोशिश की थी। रघुनन्दन ने शहर से सामान खरीदने की बात कही थी। लाला परसराम ने कहा कि किरयाना, मन्यारी, कपड़ा, बूट-चप्पल हर सामान उससे खरीदा जा सकता है?
बाबा रघुनन्दन ने जमीनी कोर्ट केस का शहर में पेशी होने का हवाला देकर लाला परसराम से पीछा छुड़ा लिया था।
पुराने कटौला में कोई पुल नहीं था। बरसाती नाला पूरे उफान पर था। रघुनन्दन नें पहले स्वयं को घोड़े पर सामान सहित सवारी करके नाला सुरक्षित लांघ लिया था। दूसरे चक्कर में धर्म पत्नी राजो और पोते गोपाल को नाला पार करवाने के लिए सारा सामान घोड़े से उतारना पड़ा था। जब दूसरे चक्कर में पत्नी और पोते को घोड़े से नाला पार करवाया जा रहा था तो अचानक नाले में पानी का बहाव एकाएक बढ़ गया था। रघुनन्दन ने बड़ी मुस्तैदी से नाला सुरक्षित पार करके राहत की सांस ली थी।
नांडल- सालगी गांवों को क्रास करके वह कमांद नामक गांव में पहुंच गए थे । यहां पर उहल नदी समीप उन सभी ने लींगड़ साग के साथ नाश्ता किया और अगले पड़ाव कटिंढी के लिए रवाना हो गए थे। दोपहर तक वह सभी नगर में पहुंच चुके थे। सबसे पहले पुरानी मंडी में वकील ठाकुर दास के घर पर पहुंच कर रघुनन्दन नें जमीन का मुकद्दमा जीतने की खुशी में देशी घी का डिब्बा, गुच्छी, लींगड साग और खोया भी भेंट स्वरुप दिया था। ठाकुर दास वकील साहब ने स्थानीय हलवाई और पंसारी मोहन को गुच्छी की बिक्री का मुनासिब दाम रघुनन्दन को दिलवा दिया था। “बाजार से आवश्यक सामान खरीदकर रघुनन्दन वापसी करना चाहता था किंतु वकील साहब ठाकुर दास ने रोक लिया था कि बरसात का मौसम है। दूसरी सुबह अवश्य चले जाना ,कोई नहीं रोकेगा। ” रात्रिकालीन ठहराव व भोजन की व्यवस्था वकील साहब के घर पर मुकम्मल कर दी गई थी। पोता गोपाल वकील साहब के घर पर बहुत सुखद महसूस कर रहा था। वकील साहब अपनी किताबों को पढ़ने में व्यस्त थे। उनकी पैनी नजर गोपाल की उत्सुकता को भांप रही थी। वकील साहब ने गोपाल को अपने पास बुलाकर शिक्षा दीक्षा का ताना बाना बुन डाला था। वकील साहब ने लाहौर से वकालत की थी । बहुत संघर्षरत जीवन यापन किया था। वकील साहब ने गोपाल को बड़ा बनने की सलाह में सुशिक्षित होने का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।
वकील साहब ने गोपाल को दुर्गम ग्रामीण जीवन से आगे का सुनहरा भविष्य संजोने की सीख दे डाली थी। गोपाल ने भी बकील साहब की आंकाक्षाओं के अनुरूप अपने दृढ प्रतिज्ञ और बचनबद्ध कर लिया था।
थोड़े अंतराल उपरांत गोपाल ने कटौला हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी मेंउत्तीर्ण कर ली थी। जब शहर आकर दादाजी रघुनन्दन ने बकील साहब ठाकुर दास को बतलाया तो वह बहुत प्रसन्नचित्त थे। वकील साहब ने गोपाल को कालेज में प्रवेश दिलाकर अपने घर में ही रहने की शरण दे डाली थी।
यह क्रम भावी भविष्य को संवारने में अनवरत आगे बढता जा रहा था। टीहरी गांव से भी गोपाल का सम्पर्क सूत्र यथावत बना रहता थी।
डिग्री कालेज से स्नातकोत्तर की उपाधि के बाद गोपाल के लिए शिमला से वकालत की पढ़ाई-लिखाई का प्रबंधन भी बकील साहब ठाकुर दास जी ने बखूबी करवाया था।
गोपाल एक बहुत बड़ा बकील बनकर शिमला में बकालत करता है। संयोगवश उसकी धर्मपत्नी शिवानी भी बकील बन कर उसका बखूबी साथ निभा रही है।
टीहरी गांव का कायाकल्प हो चुका है। पुराने कटौला के नाले पर पुल बन चुका है।
आज टीहरी के देवता आदि ब्रह्मां के दरवार में ग्रामीण धाम पकाई जा रही है। सभी ग्रामीण धाम का लुत्फ उठा रहें है। गोपाल व शिवानी की चमचमाती कार टीहरी गांव की पक्की सडकों पर सरपट दौड़ती है।
दोनों दम्पति के यहां पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है।