✍️देवभूमि न्यूज 24.इन.
भगवान् श्रीनारायण की अर्धांगिनी श्रीलक्ष्मीजी और चंद्रमा दोनों की उत्पत्ति समुद्र से होने के कारण हम लक्ष्मीजी को माँ कहते हैं और उनके भाई चंद्रमा को मामा।
किंतु यदि आप सीताजी को माँ कहते हैं, तो आज से मंगल (मार्स) को भी मामा-मामा कहना आरंभ कर दीजिए क्योंकि पृथ्वी का पुत्र मंगल ग्रह, पृथ्वी की पुत्री सीताजी का भाई है।
भगवान् श्रीराम की अर्धांगिनी श्रीसीताजी संपूर्ण जगत् की जननी हैं, किंतु कुछ ऐसे भी सौभाग्यशाली प्राणी हैं, जिन्हें अखिल ब्रह्मांड का सृजन, पालन और संहार करने वाली श्री सीताजी के भाई होने का, उन्हें बहिन कहकर पुकारने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
यद्यपि वाल्मीकीय रामायण, श्रीरामचरितमानस आदि प्रसिद्ध ग्रंथों में सीताजी के किसी भी भाई का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं होता, किंतु महर्षि वाल्मीकि जी के अवतार गोस्वामी तुलसीदास जी, महर्षि वेदव्यासजी एवं अन्य संतों के ग्रंथों में सीताजी के भाई का परिचय प्राप्त होता है।
भगवान् श्रीराम की प्राणवल्लभा श्रीसीताजी के ये भाई हैं:-
(क)पृथ्वी-पुत्री सीताजी के भाई:- (१) मंगल ग्रह (२) वृक्ष!
(ख) जनकदुलारी सीताजी के भाई- (३) राजा जनक के पुत्र लक्ष्मीनिधि।
वैदिक भारत के राष्ट्रगान के रूप में प्रसिद्ध अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त (१२/१/१२) में ऋषि पृथ्वी की वंदना करते हुए कहते हैं:-
माता भूमि पुत्रोऽहं पृथिव्याः अर्थात- हे पृथ्वी, आप मेरी माँ हैं और मैं आपका पुत्र हूँ। हम सब ऋषि-मुनियों के वंशज स्वयं को पृथ्वी माँ का पुत्र मानते हैं।
सीताजी भी पृथ्वी की पुत्री हैं और इस संबंध से पृथ्वी माँ के पुत्र उनके भाई लगते हैं।

१. पृथ्वी-पुत्री सीताजी के भाई:- मंगल ग्रह।
भगवान् श्रीनारायण की अर्धांगिनी श्रीलक्ष्मीजी और चंद्रमा दोनों की उत्पत्ति समुद्र से होने के कारण हम लक्ष्मीजी को माँ कहते हैं और उनके भाई चंद्रमा को मामा।
सीताजी और मंगल के बीच बहिन-भाई के स्नेह की एक दुर्लभ झाँकी का संकेत महर्षि वाल्मीकिजी के अवतार गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपने ग्रंथ जानकी मंगल में किया है, जिसका दर्शन करने के लिए आइए हम सब मिथिला जनकपुर चलें।
जनकपुर के विवाह मंडप में दूल्हे सरकार श्रीराघवेंद्र और दुल्हन सियाजू बैठे हुए हैं। स्त्रियाँ श्रीसीतारामजी से गणेशजी और गौरीजी का पूजन करा रहे हैं।
राजा जनकजी ने अग्नि स्थापन करके हाथ में कुश और जल लेकर कन्या दान का संकल्प कर श्रीरामजी को अपनी सुकुमारी सिया समर्पित कर दी है।
अब श्रीराम सीताजी की माँग में सिंदूर भर रहे हैं, और अब आ पहुँचा है क्षण लाजा होम विधि का, जब दुल्हन का भाई खड़ा होकर अपनी बहिन की अंजलि में लाजा (भुना हुआ धान, जिसे लावा या खील भी कहते हैं) भरता है, दुल्हन के दोनों हाथों से दूल्हा भी अपने हाथ लगाता है और दुल्हन उस लाजा से अग्नि में होम करती है।
जब पृथ्वी माँ को अपनी बिटिया सीता के विवाह का समाचार ज्ञात हुआ था, उसी समय वह अपने पुत्र मंगल के पास दौड़ी गई थी।
अपनी बहिन सीताजी के विवाह का समाचार सुनकर मंगल भी फूला नहीं समाया था। वह भी अपनी बहिन के विवाह में छिपकर वेष बदलकर आया था।
जैसे ही लाजा होम विधि का सुंदर क्षण उपस्थित हुआ और पौरोहित्य कर्म संपन्न कर रहे ऋषिवर ने आवाज लगाई:- दुल्हन के भाई उपस्थित हों!
मंगल तुरंत उठकर खड़े हो गए, श्याम वर्ण श्रीराम, मध्य में गौरवर्ण सियाजू और उनके पास रक्तवर्ण मंगल- तीनों अग्निकुंड के समीप खड़े हैं।
मंगल अपनी बहिन सिया के हाथों में लाजा भररहे हैं, सीताजी के करकमलों से ही श्रीराम के भी कर कमल लगे हैं।
ऋषिवर के मुख से उच्चारित:-_
ॐ अर्यमणं देवं, ॐ इयं नायुर्पब्रूते लाजा, ॐ इमाँल्लाजानावपाम्यग्न!
इन तीन मंत्रों (पार०गृ०सू० १/६/२) के उद्घोष के मध्य सीताजी अपने भाई मंगल द्वारा तीन बार प्रदत्त लाजा का पति श्रीराम संग अग्नि में होम कर रही हैं:-
सिय भ्राता के समय भोम तहँ आयउ।
दुरीदुरा करि नेगु सुनात जनायउ॥
(जानकी मंगल_१४८)-
जिस समय जानकीजी के भाई की आवश्यकता हुई, उस समय वहाँ पृथ्वी का पुत्र मंगल ग्रह स्वयं आया और अपने को छिपाकर सब रीति-रस्म करके अपना सुंदर संबंध जनाया।
गीताप्रेस के प्रसिद्ध आध्यात्मिक लेखक श्रीसुदर्शनसिंहजी ‘चक्र’ ने अपने रामकथात्मक उपन्यास ‘प्रभु आवत’ में मंगल के अपनी बहिन सीता जी के प्रति स्नेह का सुंदर वर्णन किया है।
भगवान् श्रीराम के वनवास की १४ वर्ष की अवधि आज समाप्त होरही है। श्रीसीतारामजी और लक्ष्मणजी की प्रतीक्षा चल रही है, मात्र अवध में ही नहीं, अपितु जनकपुरी, कौसलपूरी, सौमित्र देश, कैकेय देश, श्रृँगवेरपुर सहित पृथ्वी के अनेकानेक राज्यों में और साथ-साथ ही इस ब्रह्मांड के अन्य लोकों में भी।
पृथ्वी-पुत्र मंगल, अत्रि-पुत्र चंद्र, चंद्र-पुत्र बुध, सूर्य-पुत्र शनि, और राहू-केतु ग्रहों की गोष्ठी में मंगल अपनी बहिन सीता और बहनोई श्रीराम के अयोध्या लौटने की प्रसन्नता अभिव्यक्त कर रहे हैं।
उत्साहातिरेक से उनकी रक्तिम देह और अभी अधिक अरुण हो उठी है। वे कहते हैं कि उनकी अनुजा (छोटी बहिन) सीता के अपहरण का दुःसाहस करने वाला नीच दुष्ट रावण उन सीता के भाई मंगल से आशा करता था कि वे उस रावण के अनुकूल रहें।
मंगल आज यह जानकर आनंदित हैं कि वह व्यभिचारी राक्षस अपने ही पापों की अग्नि में जलकर भस्म हो गया। मंगल भावविह्वल स्वर में कहते हैं:-
“निखिलेश्वरी ने मुझे गौरव दिया, धरानन्दिनी होकर वे अनुजा हुईं मेरी।
कोई सेवा नहीं कर सका मैं, श्रीकौसलेश का पराक्रम वर्धन, उन अचिन्त्य शक्ति का कोई अभिवर्धन- क्या करेगा? मंगल उनकी कुंडली के पराक्रम स्थान में रहेगा, यह गौरव मंगल का।"
भगवान् शिव के ललाट से पृथ्वी पर गिरे तीन स्वेदबिंदुओं से अवंतिका (उज्जैन) में शिप्रा के तट पर मंगलनाथ स्थान पर उत्पन्न मंगल।
रक्तवर्ण, चतुर्भुजाधारी मंगल करुणामयी पृथ्वी माँ का दुग्धपान कर पालित-पोषित हुए और भूमिपुत्र, भौम कहलाए।
जब परम वैष्णव भगवान् शिव के तेज से उत्पन्न हनुमान श्रीसीतारामजी के अनन्य भक्त हों, तो उन भोलेनाथ के पसीने से उत्पन्न मंगल भला कैसे पीछे रहें?
मंगल के दिन अवतरित होने के कारण, *'मंगलभवन अमंगलहारी'* श्रीराम के सेवक होने के कारण और स्वयं *'मंगलमूरति मारुतनंदन'* होने के कारण हनुमानजी मंगल के दिन ही विशेष रूप से पूजित होते हैं।
इन मंगल की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने इन्हें शुक्रलोक से भी ऊपर मंगललोक (मार्स)प्रदान किया है, किंतु बहिन सीता के विवाह पर ये जनकपुर दौड़े हुए आते हैं।
ऐसे मंगल अपने प्रिय बहिन-बहनोई श्रीसीतारामजी से प्रेम करने वाले, उनके मधुर नाम और मंत्र का जप करने वाले उपासकों, भक्तों से भला स्वप्न में भी कैसे असंतुष्ट हो सकते हैं?
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान