श्री लिंग महापुराण

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*✍️देवभूमि न्यूज 24.इन*

द्वादाशाक्षर मन्त्र की प्रशंसा….(भाग 1)
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ऋषि बोले- हे सूतजी ! किसका जप करने पर सब भय और पापों से मुक्त होकर परमगति को प्राप्त होता है, सो कहिए।

सूतजी बोले – बहुत पहले ब्रह्मा ने वशिष्ठ के लिए जो विषय कहा है वह सब लोगों के हित के लिए तुमको संक्षेप में कहूँगा। देव देव विष्णु भगवान ब्रह्मवादियों को मोक्ष देने वाले हैं। मन से, कर्म से, वाणी से, उन नारायण का जप, स्मरण और चिन्तन, सोता हुआ, चलता हुआ, पलक खोलता हुआ, बन्द करता हुआ भी सदा करना चाहिए। नमो नारायण का सदा जप करने वाला, भोज्य, पेय, लेह्य आदि सभी पदार्थों को नमोनारायण से अभिमन्त्रित करके खाता है वह पुरुष परमगति को पाता है। अलक्ष्मी को मैंने दुस्सह की पत्नी बताया। लक्ष्मी देव देव भगवान जो हरि हैं उनकी पत्नी हैं। वह उनके भक्तों के घर में, क्षेत्र में सदा निवास करती हैं। सर्व शास्त्रों का अवलोकन करके तथा बार-बार मनन करके यही सबने निश्चय किया है कि सदा नारायण का जप करना चाहिये। ‘नमोनारायणाय’ सब सिद्धि प्रदान करने वाला है। इससे इस मन्त्र का जप करने वाला सबान्धव विष्णु लोक को प्राप्त करता है। अन्य भी विष्णु भगवान का जो मन्त्र, जिसे मैंने अभ्यास में लिया है वह द्वादशाक्षर मन्त्र है, उसका महात्म्य तुम्हें संक्षेप से कहता हूँ।

कोई ब्राह्मण तपस्या करके एक पुत्र को उत्पन्न कर उसके यथाविधि उपनयन आदि संस्कार कर पढ़ाने लगा। परन्तु न तो वह कुछ बोलता है और न ही उसकी जीभहिलती है। इससे वह ब्राह्मण बड़ा दुखी हुआ वासुदेव ऐसा कहने पर वह ‘ऐतरेव’ ऐसा बोलता है। उसका पिता दूसरी स्त्री के साथ विवाह करके बहुत से पुत्रों को उत्पन्न करता हुआ वेदों को पढ़कर सब प्रकार सम्पन्न हुआ। इससे ऐतरेय की माता सब प्रकार से दुखी होकर कहने लगी कि ये पुत्र वेद वेदान्त पारंगत ब्राह्मणों से पूज्यमान होकर अपनी माता को कैसे प्रसन्न कर रहे हैं। तू मन्द भागिनी का मेरा पुत्र कैसा भाग्यहीन है। मेरा इस समय मरना ही ठीक है, जीवन से कोई लाभ नहीं। माता से इस प्रकार कहा हुआ वह यज्ञ स्थान में पहुँचा। ऐतरेय के वहाँ आने पर ब्राह्मणों के मुख से मन्त्र ही नहीं निकलते थे। ब्राह्मण उसे देखकर बड़े मोहित हुए। ऐतरेय के द्वारा वासुदेव ऐसा कहने पर ब्राह्मणों के मुख से वाणी निकलने लगी। ब्राह्मण उसे प्रणाम करके पूजा करने लगे और धन आदि से उसका संस्कार करके यज्ञ को पूरा किया। उसने सभा में छः अंगों सहित वेदों को कहा। ब्राह्मण बड़े प्रसन्न हुए और उसकी स्तुति करने लगे। आकाश में स्थित सिद्ध लोग उसके ऊपर फूल बरसाने लगे।

इस प्रकार उस ऐतरेय बालक ने यज्ञ से लौटकर अपनी माता का पूजन किया और विष्णु लोक को प्राप्त किया। ऐसा ब्रह्मा ने वशिष्ठ को सुनाया था।

हे ब्राह्मणो ! द्वादशाक्षर मन्त्र का वैभव मैंने भी तुमसे कहा। इस महापापों का नाश करने वाले मन्त्र का जप करने वाले या सुनने वाले तथा इस कथा को पढ़ने वाले मनुष्य परमपद को प्राप्त होते हैं। पापाचार से मुक्त भी पुरुष द्वादशाक्षर मन्त्र में तल्लीन होकर परमपद को पाता है, इसमें सन्देह नहीं है। फिर स्वधर्म में स्थित वासुदेव परायण महात्मा विष्णुलोक को पावें, इसकी कहने की आवश्यकता ही क्या है।

क्रमशः शेष अगले अंक में…
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान