“ताड़ना” का अर्थ प्रताड़ना नहीं होता – तुलसीदास की चौपाई को सही संदर्भ में समझें

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देवभूमि न्यूज 24.इन

आजकल एक चौपाई को लेकर बहुत विवाद और भ्रम फैला हुआ है। कहीं यह कहा जा रहा है कि इसमें किसी वर्ग विशेष का अपमान है, तो कहीं इस चौपाई को ही बदल डालने की मांग की जा रही है। बात हो रही है —

“ढोल गवाँर शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी” — इस पंक्ति को लेकर।

यह सच है कि यह चौपाई ‘रामचरितमानस’ में आई है, परंतु इसका संदर्भ और वक्ता कौन है — यह समझना अत्यंत आवश्यक है। यह पंक्ति स्वयं गोस्वामी तुलसीदास या भगवान श्रीराम के नहीं है, बल्कि समुद्रदेव द्वारा कही गई है, जब प्रभु श्रीराम ने समुद्र को सुखाने हेतु बाण संधान किया था। संपूर्ण चौपाई इस प्रकार है:

“प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं, मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं।
ढोल गवाँर शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी॥”

यहाँ “ताड़ना” शब्द को गलत तरीके से ‘पीटना’ या ‘दंड देना’ के रूप में प्रस्तुत किया गया, जबकि इसका सही और शुद्ध अर्थ है — “समझना”, “जानना”, “परखना”।

‘ताड़ लेना’ — यह शब्दावली हम सबने अपने जीवन में सुनी भी है और प्रयोग भी की है:

“मैंने पहले ही ताड़ लिया था कि अब कुछ अनहोनी होगी।”

“किसी के मन को ताड़ लेना बहुत कठिन है।”

“गुरु ने शिष्य की मंशा ताड़ ली।”

यहाँ ‘ताड़ना’ का अर्थ है — व्यक्ति या वस्तु की प्रकृति को समझना, उसे पहचानना, और उसी अनुरूप व्यवहार करना।
प्रभु श्रीराम द्वारा क्षमादान मिलने के बाद समुद्रदेव भी यही कह रहे हैं — “प्रभु, आपने मेरी मर्यादा को समझा, मुझे शिक्षा दी, मेरी प्रकृति का सम्मान किया। इसी प्रकार यदि संसार ढोल, गवाँर, शूद्र, पशु, नारी — अर्थात् प्रत्येक जीव व वर्ग की स्वभावजन्य प्रकृति को समझ ले और उसी अनुसार व्यवहार करे, तो संसार में क्लेश नहीं, करुणा और सामंजस्य का विस्तार होगा।”

🔹 उदाहरण से समझें :

ढोल: बिना सुर-लय के ढोल बजाइए, तो कुछ ही मिनट में शोर असहनीय हो जाता है। लेकिन समझकर, लय में बजाइए, तो वही ढोल संगीत का आधार बन जाता है। यही है ताड़ना — समझ का व्यवहार।

गँवार: एक अशिक्षित व्यक्ति यदि कोई गलती करता है, तो उसे डाँटना नहीं, समझाना चाहिए। क्योंकि गलती उसकी प्रकृति नहीं, परिस्थिति है।

शूद्र: प्राचीन सामाजिक व्यवस्था में ‘शूद्र’ शब्द किसी जातिगत अपमान का प्रतीक नहीं था, बल्कि सेवा कार्यों से जुड़े लोगों को संबोधित किया जाता था। उनका भी सम्मानपूर्वक, उनकी प्रकृति के अनुसार मार्गदर्शन किया जाना चाहिए।

पशु : यहाँ तुलसीदास जी ने पशुओं के प्रति भी यही भाव प्रकट किए हैं। जैसे कुत्ते भौंकते ही हैं, वहीं उनकी प्रकृति है इसके लिए कोई उसे पत्थर मारे वो अनुचित और अधर्म है। पशुओं के साथ भी उनकी प्रकृति को समझ कर ही व्यवहार करना चाहिए।उनके ऊपर क्रोध भी उचित नहीं।

नारी: स्त्री को ‘ताड़ना के अधिकारी’ कहकर कोई नीचता नहीं, बल्कि यह संकेत है कि नारी को समझना, उसके मनोभावों को जानना अत्यंत सूक्ष्म और आवश्यक है — जिससे वह समाज की सशक्त रचयिता बन सके।

🔹 गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन और लेखन करुणा, भक्ति, और मर्यादा का आदर्श है। उनके शब्दों को आज के सामाजिक चश्मे से नहीं, समकालीन सांस्कृतिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से समझना चाहिए।

जब समुद्र जैसी स्थिर और विशाल सत्ता को प्रभु राम समझते हैं — तो संदेश यही है कि हम सभी को एक-दूसरे की प्रकृति, मनोवृत्ति और परिस्थिति को ‘ताड़ना’ यानी समझना चाहिए, न कि प्रताड़ित करना।

“शब्द वही होते हैं — अर्थ बदलते हैं।
अर्थ को समझें — अर्थ का अनर्थ न करें।”

धन्यवाद

✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान