अम्बिकानगर-अम्ब कॉलोनी समीप रेलवे-स्टेशन क्रासिंग ब्रिज व कमांडर होम गार्डज कम्पनी कार्यालय अम्ब तहसील उपमंडल अम्ब-177203 जिला ऊना-हिमाचल प्रदेश।
*देवभूमि न्यूज 24.इन*
गांव की रामलीला में रावण की भूमिका निभाने वाले काहन सिंह मास्टर जी बहुत प्रसन्नचित्त थे। समूची घाटी में रेलवे लाईन बिछाने बाद आज पहली बार रेलगाड़ी के शुभागमन पर सारा गांव उमड़ आया था। काहन सिंह का चेला सागर भी बहुत प्रसन्न होकर नाटी डाल रहा था। सागर की सभी गतिविधियां बहुत विचित्र हुआ करती थी। प्राईमरी स्कूल में गुरुदेव काहन सिंह ने सभी छात्र-छात्राओं को आगाह किया था कि सागर बड़ी लम्बी दौड़ का घोड़ा है। वह सभी को पछाड़कर अग्रिम श्रेणी की ओर सतत बढ़ता रहेगा।
गांव में मिट्टी, सिल्वर, पीतल,कांसा, तांबे के बर्तनों का प्रचलन होने से सागर के पिताजी बाबूराम ने बर्तन की दुकान चला रखी थी। बाबूराम गांव-गांव घूमकर पुरानी पीतल,कांसा,तांबा और सिल्वर के टूटे फूटे बर्तनों को बोरे में लादकर शहर ले जाते थे। वहां शहर में जगाधरी से लाये गये नये बर्तनों को गांव की दुकान पर ग्रामीणों को बेचा करते थे। बाबूराम के छोटे भाई साधूराम को यह व्यापार व सम्पन्नता फूटी आंखो नहीं सुहाती थी। अपने नाम प्रभाव के एकदम विपरीत साधूराम का उठना-बैठना गांव की निकम्मी सारा दिन ताश फैंटने वाली कुसंगत के साथ था। शुरुआत में बाबूराम ने छोटे भाई को सन्मार्ग में लाकर अपने बर्तनों के व्यापार में जोड़कर बखूबी असफ़ल प्रयत्न किया था किंतू साधूराम मौकापरस्त बनकर दुकान में हेराफेरी करके बर्तन खुर्द-फुर्द कर देता था। साधूराम शराब व जुये की लत का शिकार भी बन चुका था।बाबूराम की पत्नि जानकी ने साधूराम की कुचालें देखकर किनाराकसी कर ली थी। जानकी ने सागर बेटे को भी साधूराम से दूरी बनाए रखने को कहा था। साधूराम से हर गांववासी दूरी बनाए हुए था। गांव का गुज्जर मुसलमान परिवार मौलाना गुज्जर ने साधूराम को मामूली काज निपटाने के लिए शरण दे रखी थी। हालांकि मौलाना की बीवी रेहाना साधूराम को पशुओं की देखभाल के लिए नहीं रखना चाहती थी। साधूराम ने मौलाना की चम्मचागिरी करके अपना स्थान सुरक्षित बनाए रखा था। दुर्बुद्धि और दुर्गुणों से युक्त साधूराम की गंदी नजर उनकी बेटी सुल्ताना पर थी। मौलाना और रेहाना के दायें बायें होते ही साधूराम सुल्ताना पर डोरे डालकर बहलाने फुसलाने की जुगत भिड़ाने में जुट जाता था।
आखिरकार लम्बी ठग विद्या की जद्दोजहद में साधूराम सुल्ताना को कुल्लू भगाने में कामयाब हो गया था। कुल्लू की अदालत में जाकर साधूराम और सुल्ताना ने कानूनन शादी रचाकर सेब के बगीचों में दिहाड़ीदार बनकर आजीविकोपार्जन का प्रबंध कर लिया था। धीरे धीरे गांव में साधूराम और सुल्ताना का प्रसंग शांत हो चुका था। एक साल बाद सुल्ताना और साधूराम के यहां एक लड़के ने जन्म ले लिया था।
इसके बाद सुल्ताना और साधूराम गांव वापस लौट आए थे। ग्रामीणों ने उनका समाजिक बहिष्कार कर डाला था। साधूराम का अगला टार्गेट बड़े भाई बाबूराम की सम्पति का विभाजन करवाने का था। साधूराम और सुल्ताना को मौलाना व रेहाना की ओर से हरि झंडी मिलते ही कानूनन संघर्ष तेज हो गया था।
एक बार सागर रछौड़ा खड्ड में अपने साथी- संगी सहित खड्ड में नहाकर अठखेलियां कर रहे थे। उसी समय साधूराम भैंसे चराने वहां पहुंचा हुआ था। साधूराम के कुत्सित इरादों को कोई भांप नहीं सकता था। साधूराम का वश चलता तो वह सागर को खड्ड में डुबोकर मार सकता था। सागर ने चाचा साधूराम की चित्त वृत्ति का वृतांत घर पर सुना दिया था।
सागर की रखवाली के लिए पिताजी बाबूराम जी ने एक काला गद्दी कुत्ता पाल लिया था। यह कुत्ता बहुत ही स्वामीभक्त था। यह हर समय बाबूराम के परिवार पर सुरक्षात्मक निगरानी करने लगा था। सागर अभी पांचवीं क्लास में ही पढ़ रहा था। एक दिन साधूराम चाचा घर पर आ धमका था।

वह जमीन मकान का विभाजन करने पर बहस करने लगा था। जब साधूराम ने देखा कि कालू कुत्ता बरामदे में मोटे लोहे की जंजीर से बंधा हुआ है तो कमरे में घुसकर मौका ताड़कर बाबूराम का गला घोंटने लगा था। बाबूराम की पत्नी जानकी सहायता के लिए पुकार रही थी। ग्रामीणों के मकान बहुत दूर थे। वहां तक आवाज सुनाई देना मुमकिन नहीं था। सागर का रो- रोकर गला रुंघ चुका था। साधूराम ने अपने बड़े भाई बाबूराम का गला बुरी तरह से दबाया हुआ था। ऐसे में सागर का दिमाग काम कर गया,उसने बरामदे में लोहे की जंजीर से बंधे काले कुत्ते को खोल दिया था। कालु कुत्ते ने बड़ी फुर्ती से साधूराम का हाथ काट खाया था। इससे बाबूराम का गला घुटने से बच गया था। अगले ही क्षण कालु कुत्ते ने साधूराम की टांगों पर तीन चार जगह से बुरी तरह काट दिया था।
साधूराम ने काले कुत्ते के काटने का पुलिस केस बाबूराम पर जड़ दिया था। गांव की पंचायत ने क्रास केस उल्टे साधूराम पर कर दिया था। ग्राम पंचायत का कहना था कि साधूराम अपने बड़े भाई बाबूराम को जान से मारने के इरादे से जबरन घर में घुसा था। दोनों तरफ से अदालती बिवाद बढ़ता चला जा रहा था। ऐसे में सागर की पढ़ाई-लिखाई पर असर पड़ता साफ नजर आता था । गांव के वृद्ध सरपंच और पूर्व में ग्राम पंचायत के प्रधान रहे वयोवृद्ध प्रधान मोहन सिंह की रहनुमाई में एक समझौता समिति का गठन करके ग्रामीणोॅ ने हर हालत में बाबूराम और साधूराम दो भाईयों का विवाद समाप्त करवाने की मुहिम तेज कर दी थी।
एक माह के भीतर ही ग्रामीणों को बाबूराम और साधूराम का झगड़ा हमेशा हमेशा के लिए समाप्त करवाया था।
बाबूराम और साधूराम में कोई मकान-जमीन का विभाजन नहीं हुआ अपितु संयुक्त रूप से बर्तनों का वृहद व्यापार शुरू हो चुका था।
साधूराम की निठल्ली चांडाल चौकड़ी को भी स्वरोजगार की मुख्य धारा से जोड़कर एक नये युग का सूत्रपात हुआ है।
वर्तमान में सागर ने एक बहुत बड़े डाक्टर बतौर अपनी अच्छी खासी पहचान बनाई है। सागर की धर्मपत्नी सुमन भी डाक्टर है जबकि साधूराम और सुल्ताना का लडका अमन व बहुरानी जन्नत भी डाक्टर बनकर पीड़ित मानवता की सेवार्थ समर्पित है।
इन सभी डाक्टरों की टीम ने गांव के अनेको युवक-युवतियों को डाक्टर बनवाने का संकल्प साकार करवाया है। गांव सर्वांगीण विकास की मुख्य धारा से सरसव्ज बन चुका है।
निकट भविष्य में गांव में एक बहुत बड़ा चैरिटेबल अस्पताल खुलवाने की भरसक कोशिश जारी है। मौलाना और रेहाना का अत्याधुनिक मिल्क डायरी पलांट ग्रामीणों को स्वरोजगार का वरदान सिद्ध हुआ है।
हर साल गांव में नूतन साल में एक बहुत बड़ा सार्वजनिक लंगर लगाया जाता है। गांव में हर पल आनन्दोत्सव का संचार हो रहा है।
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