श्राद्ध न करने वाले को कष्टों का सामना करना होता है

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देवभूमि न्यूज 24.इन

श्राद्ध न करनेसे मृत प्राणी के कष्टों की कोई सीमा नहीं होती। पर श्राद्ध न करनेवालेको भी पग-पगपर कष्टका सामना करना पड़ता है। मृत प्राणी बाध्य होकर श्राद्ध न करनेवाले अपने सगे-सम्बन्धियोंका रक्त चूसने लगता है –

श्राद्धं न कुरुते मोहात् तस्य रक्तं पिबन्ति ते । (ब्रह्मपुराण)

साथ-ही-साथ वे शाप भी देते हैं-

…पितरस्तस्य शापं दत्त्वा प्रयान्ति च। (नागरखण्ड)

फिर इस अभिशप्त गृहस्थ परिवारको जीवनभर कष्ट-ही-कष्ट झेलना पड़ता है। उस परिवार में पुत्र नहीं उत्पन्न होता, कोई नीरोग नहीं रहता, लम्बी आयु नहीं होती, दुर्घटना होती रहती है बच्चो को भी दुख तकलीफ आती रहती है। किसी तरह कल्याण नहीं प्राप्त होता और मरनेके बाद नरक भी जाना पड़ता है।
उपनिषद्में भी कहा गया है कि ‘देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम्’ (तै०उप० १।११।१)। अर्थात् देवता तथा पितरोंके कार्योंमें मनुष्यको कदापि प्रमाद नहीं करना चाहिये।
पिता जीवित हैं तो पिता ही हर अमावस्या पर तीर्थजल में खड़े होकर पूर्वजों के लिये तर्पण आदि करें वह भी काले तिल मिश्रित। और ब्राह्मण भोज व देवी स्वधा स्तोत्र तो अनिवार्य है ही । कुछ न हो तो तर्पण के बाद गौ को चारा ही खिला दें। पितरों के लिए श्री शिव पूजा व श्री हरि पूजा भी कर सकते हैं।
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गयामें श्राद्ध करनेकी अत्यधिक महिमा है। शास्त्रोंमें लिखा है-

जीवतो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात्।

गयायां पिण्डदानाच्च त्रिभिर्युत्रस्य पुत्रता ॥

(श्रीमद्देवीभागवत ६।४।१५)

जीवनपर्यन्त माता-पिताकी आज्ञाका पालन करने, श्राद्ध में खूब भोजन कराने ( सामर्थ्य के अनुसार) और गयातीर्थमें पितरोंका पिण्डदान अथवा गयामें श्राद्ध करनेवाले पुत्रका पुत्रत्व सार्थक है।

‘ गयाभिगमनं कर्तुं यः शक्तो नाभिगच्छति…..

‘जो गया जानेमें समर्थ होते हुए भी नहीं जाता है, उसके पितर सोचते हैं कि उनका सम्पूर्ण परिश्रम निरर्थक है।

अतः मनुष्यको पूरे प्रयत्नके साथ गया जाकर सावधानीपूर्वक विधि-विधानसे पिण्डदान करना चाहिये।’

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विविध श्राद्ध-

उत्तमषोडशीके श्राद्धोंकी पुनरावृत्तिका निम्नलिखित क्रम है-

(१) ऊनमासिक (पाक्षिक) – मृत्युतिथिसे ठीक बीसवें दिन ।

(२) प्रथम मासिक-प्रथम मासके पूर्ण होनेपर द्वितीय मासके प्रथम दिन मृत्युतिथिपर।

(३) त्रैपाक्षिक-मृत्युतिथिसे डेढ़ महीनेपर उसी तिथिको ।

(४) द्वितीय मासिक-तृतीय मासके प्रथम दिन मृत्युतिथिपर।

(५) तृतीय मासिक-चतुर्थ मासके प्रथम दिन मृत्युतिथिपर।

(६) चतुर्थ मासिक-पंचम मासके प्रथम दिन मृत्युतिथिपर।

(७) पंचम मासिक-षष्ठ मासके प्रथम दिन मृत्युतिथिपर।

(८) ऊनषाण्मासिक-मृत्युतिथिसे साढ़े पाँच महीनेपर उसी तिथिको।

(९) षाण्मासिक-सप्तम मासके प्रथम दिन मृत्युतिथिपर।

(१०) सप्तम मासिक- अष्टम मासके प्रथम दिन मृत्युतिथिपर।

(११) अष्टम मासिक- नवम मासके प्रथम दिन मृत्युतिथिपर।

(१२) नवम मासिक-दशम मासके प्रथम दिन मृत्युतिथिपर।

(१३) दशम मासिक- एकादश मासके प्रथम दिन मृत्युतिथिपर।

(१४) एकादश मासिक- द्वादश मासके प्रथम दिन मृत्युतिथिपर।

(१५) ऊनाब्दिक-मृत्युतिथिसे साढ़े ग्यारह महीनेपर उसी तिथिको।

(१६) आब्दिक (वार्षिक) – बारहवें मासके पूर्ण होनेपर त्रयोदश मासके प्रथम दिन (वार्षिक मृत्युतिथिपर)।
शेष विधि गरुड पुराण