तुंगल घाटी की गूंज।(कहानी)-राजीव कुमार शर्मन्

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सोमभद्रा-स्वां नदी बाजार समीप अम्बिकानगर-अम्ब कलौनी रेलवे स्टेशन रोड अम्ब-177203 ऊना हिमाचल प्रदेश।

*देवभूमि न्यूज 24.इन*     

हिमाचल प्रदेश में बहुत हसीन वादियों का नज़ारा मनमोहक लगता आया है। इनमें एक मनभावन श्री तुंगल घाटी है जो कि प्राचीन श्री मांडव्य ऋषि नगर जनपद उपनाम श्री छोटी काशी जिला मंडी के नैसर्गिक सौंदर्य में स्थित है। इस घाटी ने ही नगर संस्कृति का रुप धारण करना शुरू कर दिया है। पिछले सौ सालों से यहां के देहातियों ने बहुत मुश्किल हालातों का सामना किया था। यह घाटी हमारे पूर्वजों की भी कर्म स्थली रही है। कोई समय तुंगल घाटी में पानी-बिजली, सड़कें तमाम मूलभूत सुविधाओं का टोटा था। ऐसे में आज से पचास साल पहले यहां के कोटली स्कूल में विभिन्न बैठकों का दौर चलता रहता था। सभी गांव में अस्पताल, बिजली पानी सड़क निर्माण बारे गहन मंथन और समाधान खोजने में सक्रिय थे। इस संघर्ष की फेहरिस्त बहुत लम्बी है। इसमें कोटली स्कूल में पढ़ने वाले छात्र छात्राओं ने भी अभूतपूर्व योगदान दिया था।समय परिवर्तन के साथ साथ इसी कोटली स्कूल की तुंगल घाटी में पढ़ने वाले छात्रों श्री कन्हैयालाल ठाकुर और श्री दुर्गा दत्त ठाकुर जी तुंगल घाटी सदर विधानसभा क्षेत्र मंडी सदर से विधायक बनने का सुअवसर भी मिला था।
हर मनुष्य की जीवन‌ में सबसे पुरानी बचपन की याद अवश्य मानस पटल पर ताजीवन तरोताजा रहती है। मैंने जब से होश संभाला तो अपने को घरवाण-पटनाल कसाण कोटली तुंगल घाटी में पाया था। उन दिनों हमारा परिवार अपने पुश्तैनी मकान में रहता था। स्वर्गीय पिता जी कोटली स्कूल में शास्त्री अध्यापक कार्यरत थे। पिताजी का बैटरी का रेडियो आकाशवाणी शिमला से प्रसारित पर्वत की गूंज सुनाता था। पिताजी तुंगल घाटी की गूंज सुनाते थे। बहुत सालों तक तुंगल घाटी की गूंज सुनाते रहते थे। मुझे तो तुंगल नगर घाटी बहुत ही प्यारी लगती है। मेरे बचपन का अधिकांश समय यहां व्यतीत हुआ है। यहां के घरवाण प्राईमरी स्कूल में अक्षर ज्ञान प्राप्त करके लिखना शुरू किया था। वह बहुत ही कठिन दौर था। वर्तमान में तो समूची तुंगल नगर घाटी नये विकासोन्मुखी सोपान चढ़ती आई है। आज कोटली तुंगल घाटी में पुराने मित्र अरसा दराज के बाद बतियाते हुए पुराने बचपन और स्कूली समय की मीठी मीठी यादों को सांझा कर रहे थे। अशोक ने पुरानी यादों का खुलासा किया था कि आज से पचास सालों में बहुत कुछ बदल गया है। कोई समय कामरेड धनी राम ठाकुर जी ने तुंगल घाटी का जो विकासोन्मुखी कायाकल्प योजनाओं का खाका तैयार करवाया था।वह असल में पूर्णतया लागू नहीं हो पाया है। बाकी मित्रों ने सहमति जताई कि हां भाई हमारे पिताजी ने बहुत सारी बैठकों में धनीराम,गुरिया राम, ठाकुर लुदरमणी , गौरी शंकर आदि ने बहुत सारी गतिविधियों पर सविस्तार कार्यान्वयन को अमली जामा पहनाया था। इस कार्य के लिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। इन सब गतिविधियों के बावजूद जल, जंगल जमीन का समुचित दोहन के अभाव में पूर्णतया सफल नहीं हो पाई है।
बहुत सारी पुरानी यादों में सभी अपने अपने अतीत में खोने लगे थे।
वीरी सिंह, सतीश, कृष्ण चंद , अशोक और लालमन बहुत पुराने लंगोटिया यार थे। तुंगल घाटी का नैसर्गिक सौंदर्य किसी से छिपा नहीं है। पौराणिक श्री मांडव्य ऋषि नगर जनपद का अभिन्न अंग यह सैंकड़ों गांवों का विस्तृत क्षेत्र बहुत ही मनभावन लगता आया है। तुंगलघाटी के चहुं ओर रमणीय पहाड़ियां हैं तथापि इन पहाड़ियों पर देवी-देवताओं के भव्य मंदिर इसकी सुंदरता पर चार चांद लगा देते हैं। श्री तुंगल घाटी धार्मिक पर्यटन स्थली होने से छोटी काशी प्राचीन मांडव्य नगर तुंगल घाटी में रहने वाले तमाम देहातियों का प्रमुख नगर माना जाता रहा है। कालांतर में भी व्यापारिक गढ़ श्री मांडव्य नगर (मंडी) होने से आज भी तुंगल घाटी का सीधा सम्पर्क छोटी काशी नामक धार्मिक स्थली से बरकरार है। प्राचीन रियासत कालीन श्री मांडव्य नगर जनपद से बहती आ रही विपाशा नदी (व्यास दरिया) तुंगल घाटी के अनेकों गांवों से आज भी कोट-कुन्नतर की ओर हमीरपुर-कांगड़ा जिलों में प्रवेश करती आई है। तुंगल घाटी के लोगों की रची बसी संस्कृति में व्यास नदी का सन्निकट होने से गहरा नाता है। व्यास नदी को विभिन्न सिंचाई योजनाओं व कृषिगत जमीन के लिए समुचित दोहन प्रबंधन होता रहा है किन्तु तुंगल घाटी के दुर्गम गांवों के लिए व्यास नदी का यथोचित लाभ नहीं हो पाया था। वर्तमान में भी तुंगल घाटी की साक्षरता दर वृद्धि होने से यहां के कुशल इंजिनियरों ने व्यास नदी पर खाड्ड कलयाणा से कोट-कुन्नतर तक विद्युत उत्पादन क्षमता बढ़ाने हेतु गहरा मंथन जारी रखा था। अस्सी के दशक में जिला मंडी के पंडोह नामक स्थान से व्यास का पानी सतलुज नदी में ले जाने से सभी योजनाएं निरस्त और धरी धराई रह गई थी। निराशा में तुंगल घाटी के इंजिनियर अशोक ने सेना में ही भर्ती होना उचित समझा था।
अशोक की मित्र मंडली के अधिकांश मित्रों ने नौकरी की तलाश में विदेशों का रुख कर लिया था। ऐसे में तुंगल घाटी का चहुंमुखी सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करवाने की फेहरिस्त धरी धराई रह गई थी।
आजकल लगभग पांच दशकों के अंतराल उपरान्त पुराने मित्रों का समागम भरगांव की प्राचीन माता शक्ति स्थल सुरगणीं के पास हुआ था। इनमें अधिकांश मित्र सरकारी सेवा निवृत्ति और विदेशों में बहुत सालों तक नौकरी करने उपरान्त स्वदेश लौट आए थे।
ऐसे में तुंगल घाटी का बहुविधि आधुनिकता के दौर में एक मोर्चे का गठन किया गया है। अब यह नया मोर्चा तुंगल घाटी में हर सम्भव नई विकासवादी योजनाओं को साकार करवाने में एक नये समृद्ध आधुनिक तुंगल नगर की परिकल्पना को साकार करवाने हेतु जुट गया है। इसमें महिलाओं ने गांव गांव में जाकर समूची तुंगल घाटी की सृजनात्मक पहल में अहम भूमिका निभाई है। तुंगल घाटी में सभी मूलभूत सुविधाओं का नया नगर बनवाने की सभी संभावनाओं को तलाशने का एक नया अध्याय जुड़ रहा है। प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य में बसी तुंगल घाटी आधुनिकता के सरसव्ज श्री तुंगल नगर में परिवर्तित होने लगी है। धार्मिक पर्यटन स्थलों को विकसित करने के साथ-साथ व्यास नदी में बांध बनवाने का संकल्प भी स्थानीय शुभचिंतकों ने विधिवत सुझाया है।
नई भावी पीढ़ी की तुंगल नगर युवा पीढ़ी ने तो पर्यटन नगरी तुंगल नगर में क्रिकेट स्टेडियम, चहुंमुखी सर्वांगीण विकास क्रांति सुनिश्चित करवाने की गर्ज से बहुआयामी योजनाओं को साकार करवाने का युद्ध स्तर पर मोर्चा खोल दिया है।
आने वाला समय नये श्री तुंगल नगर घाटी का है जिसमें समग्र औद्योगिक विकास क्रांति के साथ साथ हरित क्रांति व ब्राड गेज रेलवे लाईन विस्तार की भी पूर्ण उपलब्धि हासिल होगी। शुभचिंतकों का कहना है कि जब भी श्री मांडव्य ऋषि नगर जनपद से ब्राड गेज रेलवे लाईन बिछाने का कार्य शुरू होगा तो वह व्यास नदी के दोनों किनारों से खाड्डकल्याणा-कोट-कुन्नतर से हमीरपुर, कांगड़ा-चम्बा-श्रीनगर तक एक स्वर्णिम इतिहास रचाने में सतत् कारगर एवं सफल सिद्ध होगा। सामरिक दृष्टि के महत्व की ब्राड गेज रेलवे लाईन सचमुच तुंगल नगर घाटी का बहुविधि कायाकल्प करवायेगी।
सभी तुंगल नगर घाटी के इलाका वासियों ने इस पर अटल विश्वास जताया है।।

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