*देवभूमि न्यूज 24.इन*
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद तेहरवीं न मनाने के बारे में कई मान्यताएं और धारणाएं हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इन मान्यताओं का वैज्ञानिक आधार नहीं हो सकता है, लेकिन ये धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का हिस्सा हैं।
तेहरवीं न मनाने के संभावित परिणाम:
आत्मा की अशांति: माना जाता है कि यदि तेहरवीं नहीं मनाई जाती है, तो मृतक की आत्मा को शांति नहीं मिलती है और वह अशांत रहती है।
पितरों का क्रोध: ऐसा माना जाता है कि यदि तेहरवीं नहीं मनाई जाती है, तो पितर क्रोधित हो सकते हैं और परिवार पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
कुंडली और ग्रहों पर प्रभाव: कुछ लोगों का मानना है कि तेहरवीं न मनाने से मृतक की कुंडली और ग्रहों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे परिवार के सदस्यों के जीवन में समस्याएं आ सकती हैं।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:
परंपरा का पालन: तेहरवीं मनाना एक पारंपरिक अनुष्ठान है, और इसका पालन न करने से धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का उल्लंघन हो सकता
आध्यात्मिक लाभ: तेहरवीं मनाने से आध्यात्मिक लाभ होता है, और इसे न मनाने से यह लाभ नहीं मिल पाता है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य:
व्यक्तिगत पसंद: आजकल, लोग अपनी व्यक्तिगत पसंद और परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेते हैं, और तेहरवीं मनाना या न मनाना उनकी व्यक्तिगत पसंद हो सकती है।