अम्बिकानगर-अम्ब कॉलोनी समीप रेलवे-स्टेशन क्रासिंग ब्रिज व कमांडर होम गार्डज कम्पनी कार्यालय अम्ब तहसील उपमंडल अम्ब-177203 जिला ऊना-हिमाचल प्रदेश।
*देवभूमि न्यूज 24.इन*
पड़ोस की लाडो काकी ने अनाज की दुकानों पर उधार का राशन लेने के लिए काफी जद्दोजहद की थी। अपनी गली के घलजेन्द्रू, बहल करियाना,श्री देव, शायरू राम,डऊं उपाधा, गंगू राम आदि ने तो लाडो काकी को उधार का राशन देने से साफ इंकार कर दिया था। कारण एकदम साफ था कि लाडो काकी का पति बालकराम शंखचूड शराबी था। हालांकि लाडो काकी काफी मेहनत मुशक्कत करके यदा कदा गृहस्थ का बोझ ढोती चली आ रही थी। अलबत्ता महाजन बाजार के कर्म चंद मास्टर जी ने लाडो काकी पर विश्वास जताते हुए उधार का राशन देना मंजूर कर लिया था।पारस्परिक सामंजस्य, सहकारिता,मेल- मिलाप का अद्भुत दौर था। बहुत गिने चुने दुकानों- मकानों को हर मोहल्ले भी गिनकर याद रखा जा सकता था। विशेषत: हर गली – मोहल्ले का हलवाई, नाई, पानवाड़ी,किरयाना स्टोर और आटा चक्की-दाल पीसने वाले बहुतायत में अच्छी खासी पहचान रखते थे। विभिन्न मकानों के खुले द्वार होते थे,जिन्हें आम लोक प्रचलित भाषा में परौल कहा जाता था। शहर में चुनिन्दा “परौले” बड़ी मशहूर हुआ करती थी। बजीरा री परौल, डुग्घी परौल, लम्ब कयाड़ू परौल,मियां री परौल सम्मिलित थी। कुछ घरों की इन परौलों में प्रवेश करते ही गायों के दर्शन भी हो जाते थे। शहर होने के चलते ग्रामीण परिवेश का गौपालक रिवाज बरकरार था। अगर किसी कारणवश किसी ने गाय ना पाली हो तो शहर में स्वछंद घूमने वाली गायें इन परौलों को अपनी शरणस्थली बना लेती थी। हर गली मोहल्ले के लोग बड़ी आसानी से पहचान लिए जाते थे। साधारणत: सभी का बचपन
शहर के घंटाघर नामक बाग में व्यतीत हुआ था।हमारे पड़ोस की लाडो काकी से सभी बच्चे सुपरिचित थे। लाडो काकी का संवाद देखते ही अचंभित कर देता था। इस संवाद में अपनत्व की भावना जागृत हो उठती थी। पड़ोस के बच्चों का स्कूली दौर का अपना ही जनून होता था। पड़ोस के दोनों सहपाठी सागर और महेश घरेलु झगड़ों के कारण स्कूल जाने की स्थिति में नहीं थे। पिछली रात्रि दोनो के घरों में जबरदस्त महाभारत हुआ था। यह महाभारत सास- बहु की नोक-झोंक से आरम्भ होकर सारे कुनवे की हाथापाई में परिणत हो चुका था। सागर और महेश दोनों आपस में ताया- चाचा के लड़के सहमे हुए थे। वह अपने घर की खिड़कियों से लाडो काकी के आंगन में दृष्टि गड़ाकर लाडो काकी को कपड़े धोते देख रहे थे। लाडो काकी ने समय की नजाकत भांपते हुए महेश और सागर को स्कूली बस्तों की तैयारी समेत बुलाकर आटा घोलकर बनाए गये चिल्हडों को खिलाकर स्कूल भेजा था।लाडो काकी के व्यवहार से सभी बच्चे अत्यंत प्रभावित रहा करते थे। सागर,महेश दोनों सहपाठी लाडो काकी के सुपुत्र तिलकराज के साथ-साथ पढ़ते थे। महेंद्र पाल व अश्वनी कुमार इन दोनों के पिताजी थे। महेन्द्र पाल की धर्मपत्नी मनसा देवी गृह कलह के चलते व्यास दरिया में छलांग लगाने दौड़ी थी किंतु लाडो काकी के पति बालकराम ने ऐन मौके पर पहुंच कर बचा लिया था। बालकराम स्वंय शराब के नशे में धुत पड़ा रहता था। कोई समय इंडो जर्मन प्रोजेक्ट में ड्राईवर हुआ करता था। शराब की लत के कारण नौकरी छूट चुकी थी। उनके एक मात्र लड़के तिलकराज की परवरिश व पढ़ाई-लिखाई में रुकावटों का यह कठिन दौर था। कभी कभी लाडो काकी को बहुत सारे घरों में जाकर चूल्हा बर्तन करना पड़ता था। बालकराम ने ढीठपन के चलते कमाने धमाने के नाम पर किनाराकसी कर रखी थी। बालकराम जैसे पियक्कड़ को कोई ना कोई हम प्याला शराब पिलाने वाला मिल ही जाता था। लाडो काकी को खूबराम के डिपो पर लकड़ियों के छिलके एकत्रित करते हुए भी देखा जाता था। लाडो काकी घर गृहस्थ चलाने के लिए अथक परिश्रम करती इसके बावजूद वह अपने सद्व्यवहार से सबका मन मोह लेती थी। किसी ने आज दिन तक लाडो काकी को किसी मेलों अथवा जागरण में शिरकत करते कभी नहीं देखा था। रात्रिकालीन तक वह ऊन कातने का चरखा भी चलाती थी ताकि आर्थिक निर्वहन किया जा सके। लाडो काकी को सास-ससुर, देवर- देवरानी किसी का कोई सहयोग नहीं मिलता था। एक छोटा देवर श्यामलाल जन्मजात विक्षिप्त भी बना हुआ था। यह सभी पूर्व संचित किल्ष्ट संस्कारों के चलते लाडो काकी के लिए दुविधाग्रस्त स्थितियां पैदा करते जा रहे थे। यही नहीं लाडो काकी की एक ननद उषा जालन्धर पंजाब में व्याही गई थी। वह भी आए दिन अपने पीहर में आकर लाडो काकी पर खूब रौब झाड़ती थी। हालांकि यह ननद उम्र में बहुत छोटी थी। इस ननद ने अपने पति के साथ मिलकर गांव व शहर की सम्पति पर खूब अधिकार जमाकर बंटवारे का विगुल भी बजा दिया थी। जबकि कोई समय उषा की शादी के लिए लाडो काकी ने अपने मायके के दिए हुए सोने की कंठी, पैंडल, चाक, टीका, चूड़ियां तक सास-ससुर के दबाव डालने पर दे दिए थे। लाडो काकी को झूठा आश्वासन सास-ससुर द्वारा दिया गया था कि उसे निकट भविष्य में जल्दी ही आभूषण तैयार करके लौटा दिए जायेगें। काफी अंतराल उपरांत भी यह आभूषण लाडो काकी को वापिस जुड़ नहीं पाये थे। लाडो काकी एक मात्र सोने की अंगूठी, मंगल सूत्र व चांदी की पाजेव से विवाह शादी समारोह में समय निकालती थी।
तिलकराज अपनी माताजी लाडो काकी के इस शोषण का काफी गहन मंथन कर चुका था।
शहर के हाई स्कूल के गुरूजनों ने तिलकराज के भावी भविष्य का बहुविधि संचरण जारी कर दिया था। उधर लाडो काकी पर घरेलू हिंसा व अत्याचार बदस्तूर जारी थे।उषा ननद के सिरफिरे विगड़ैल लड़के दौलत ने लाडो काकी के शेष बचे गहनों का बाक्स चुरा लिया था। साफ जाहिर था कि दो महीने की बरसात की छुट्टियों में उषा ननद ने बच्चों समेत डेरा डाला हुआ था।
सारा बिजली व पानी का बिल भी लाडो काकी के सिर पर डाल दिया गया था। एक भारी मुसीबत के चलते अत्याधिक शराब पीने से बालकराम की मृत्यु हो चुकी थी।
तिलकराज का भविष्य धूमिल होता देखकर लाडो काकी ने सास-ससुर का पुश्तैनी मकान-जमीन छोड़कर किराए के मकान की शरण ली थी।
स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी पंडित गौरी प्रसाद ने लाडो काकी को सरकारी कार्यालय में सेवादार नियुक्त करा दिया था।
लाडो काकी ने अपनी मेहनत के बलबूते नेरचौक गांव में अपना मकान खरीद लिया था।
तिलकराज आजकल पुलिस इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत है।
तिलकराज का विवाह सम्पन्न हो चुका है। तिलकराज की धर्मपत्नी पंचायत में सेवारत है। सारा परिवार सुखद जीवन यापन कर रहा है। लाडो काकी के ससुराल वालों ने लाङो काकी को वापिस घर लाने के बहुत प्रयास किए किंतु लाडो काकी किसी कीमत पर ससुराल की मकान-जमीन पर आने के लिए तैयार नही हुई थी।
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