*देवभूमि न्यूज 24.इन*
हम जिन कक्षाओं में बैठकर लोकतंत्र, संविधान और नागरिक अधिकारों की पढ़ाई कर रहे हैं, वहीं संस्थान अगर हमें अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार नहीं देते,तो यह दोहरापन नहीं तो और क्या है? छात्र संघ चुनाव न सिर्फ हमारा अधिकार है ब्लकि यह लोकतांत्रिक मूल्यों का व्यवहार में उतारने का पहला मंच भी है!
छात्र राजनीति केवल चुनाव और पद का नाम नहीं बल्कि यह वह पवित्र पाठशाला है जहां से भविष्य के नेतृत्व की नींव रखी जाती है!
आज जब सरकार पंचायतीराज और निकाय चुनाव करवा रही हैं,तो शिक्षा के मंदिरों में लोकतंत्र क्यों नहीं ? क्या विद्यार्थीयों की आवाज डर का विषय है? क्या छात्रों का मत कोई अपराध है!
छात्र संघ चुनाव लोकतांत्रिक परंपराओं की आधारशिला होती है और युवाओं को नेतृत्व का मंच प्रदान करते हैं!इन चुनावों के माध्यम से छात्र अपनी समस्याओं की आवाज बुलंद करते हैं,नेतृत्व का अनुभव प्राप्त करते हैं और संस्थान फैसलों में भागीदारी निभाते हैं! अगर हमसे यह हक छीना जाता है, तो हम केवल किताबों तक सीमित नागरिक रह जायेंगे-व्यवहारिक लोकतंत्र का हिस्सा कभी नहीं बन पाएंगे!

लोकतंत्र की नींव भागीदारी और प्रतिनिधि पर टिकी है!जब संस्थान खुद इस प्रक्रिया को रोकते हैं तो यह न केवल छात्रों के हक का हनन है, ब्लकि शिक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा करता है!
छात्रों की यह लड़ाई केवल एक चुनाव की नहीं, ब्लकि हमारे हक, हमारी आवाज और हमारे अस्तित्व की है!
“वर्षों से थमा हुआ यह लोकतांत्रिक प्रवाह अब फुटने को आतुर है” क्योंकि छात्र संघ चुनाव केवल एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि युवाओं के सामाजिक, बौद्धिक और नैतिक विकास का माध्यम है! इनकी बहाली से न केवल शिक्षा संस्थानों में लोकतांत्रिक संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा ब्लकि देश के लिए जिम्मेदार और जागरूक नागरिक भी मिलेंगे!
आज यह अब अत्यंत आवश्यक है कि राज्य सरकार छात्र समुदाय की भावनाओं का सम्मान करते हुए प्रदेश भर के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में जल्द से जल्द छात्र संघ चुनाव बहाल कर निष्पक्ष और पारदर्शी छात्रसंघ चुनाव आयोजित करें!
रितेश पोजटा छात्र राजनीति विज्ञान हि०प्र०विश्वविद्यालय