महादेव ने क्यों अपने त्रिनेत्र से कामदेव को कर दिया था भस्म ? जाने कामेश्वर धाम की पौराणिक कथा

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*देवभूमि न्यूज 24.इन*

🪦कामेश्वर धाम उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित है। मान्यता है कि यह वही स्थान है जिसका उल्लेख शिव पुराण में मिलता है जहाँ भगवान शिव ने देवताओं के सेनापति कामदेव को भस्म कर दिया था।

आज भी वहाँ एक अधजला, हरा-भरा आम का पेड़ मौजूद है जिसके पीछे कामदेव छिप गए थे और उन्होंने भोलेनाथ को उनकी गहन तपस्या से जगाने के लिए पुष्प बाण चलाया था।

शिव पुराण में भगवान शिव द्वारा कामदेव को भस्म करने की कथा इस प्रकार है। भगवान शिव की पत्नी सती अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में अपने पति भोलेनाथ का अपमान सहन नहीं कर पातीं और यज्ञ वेदी में कूदकर आत्महत्या कर लेती हैं। जब भगवान शिव को यह बात पता चलती है, तो वे अपने तांडव से पूरे ब्रह्मांड में उत्पात मचा देते हैं। इससे व्याकुल सभी देवता भगवान शंकर को मनाने उनके पास पहुँचते हैं। उनके अनुनय-विनय से शांत हुए महादेव परम शांति के लिए गंगा और तमसा के इस पवित्र संगम पर आते हैं और ध्यान में लीन हो जाते हैं।

इस बीच महाबली राक्षस तारकासुर अपनी तपस्या से भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर ऐसा वरदान प्राप्त कर लेता है कि उसकी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के द्वारा ही हो सकती है। यह एक तरह से अमरता का वरदान था क्योंकि सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव समाधि में चले गए थे। इस कारण तारकासुर का उत्पात दिन-प्रतिदिन बढ़ता जाता है और वह स्वर्ग पर अधिकार करने की कोशिश करने लगता है। जब यह बात देवताओं को पता चलती है तो वे सभी चिंतित हो जाते हैं और भगवान शिव को समाधि से जगाने का निर्णय लेते हैं। इसके लिए वे कामदेव को सेनापति बनाते हैं और यह कार्य कामदेव को सौंपते हैं। कामदेव, महादेव के समाधि स्थल पर पहुंचकर अनेक प्रयत्नों, जिनमें अप्सराओं का नृत्य आदि शामिल है, के माध्यम से महादेव को जगाने का प्रयास करते हैं, लेकिन सभी प्रयास व्यर्थ जाते हैं। अंत में कामदेव स्वयं एक आम के पेड़ के पत्तों के पीछे छिप जाते हैं और भोले नाथ को जगाने के लिए भगवान शिव पर पुष्प बाण चलाते हैं। पुष्प बाण सीधे भगवान शिव के हृदय पर लगता है, और उनकी समाधि टूट जाती है। भगवान शिव अपनी तपस्या भंग होने पर अत्यंत क्रोधित होते हैं और आम के वृक्ष के पत्तों के पीछे खड़े कामदेव को अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर देते हैं।

*📿कामेश्वर धाम अनेक ऋषियों की तपस्थली रहा है
त्रेता युग में भगवान श्रीराम और लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ इस स्थान पर आए थे, जिसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में भी मिलता है। अघोर संप्रदाय के प्रवर्तक श्री किनाराम बाबा की प्रथम दीक्षा यहीं हुई थी। दुर्वासा ऋषि ने भी यहीं तपस्या की थी। कहा जाता है कि पहले इस स्थान का नाम कामकारु कामशिला था। यही कामकारु पहले अपभ्रंश में काम शब्द का लोप होकर करुण, फिर कारून और अब कारो नाम से जाना जाता है।कामेश्वर धाम कारो में तीन प्राचीन शिवलिंग और शिवालय स्थापित हैं।

📿श्री कामेश्वर नाथ शिवालय –
यह शिवालय रानी पोखरा के पूर्वी तट पर एक विशाल आम के वृक्ष के नीचे स्थित है। इसमें स्थापित शिवलिंग खुदाई के दौरान मिला था, जो ऊपर से थोड़ा खंडित है।

📿श्री कवलेश्वर नाथ शिवालय-
इस शिवालय की स्थापना अयोध्या के राजा कमलेश्वर ने की थी। कहा जाता है कि यहाँ आने पर उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया था। उन्होंने इस शिवालय के पास एक विशाल तालाब बनवाया था जिसे रानी पोखरा कहा जाता है।

📿श्री बालेश्वर नाथ शिवालय-
बालेश्वर नाथ शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि यह एक चमत्कारी शिवलिंग है। एक किंवदंती है कि जब अवध के नवाब मुहम्मद शाह ने 1728 में कामेश्वर धाम पर आक्रमण किया, तो बालेश्वर नाथ शिवलिंग से निकलने वाले काले भौंरों ने उन्हें जवाबी हमला करके भागने पर मजबूर कर दिया।

 *♿जय_महाकाल♿*