बेकार जाएगी मेहनत, नहीं मिलेगा फल… क्या आप भी श्राद्ध में मित्रों को देते हैं निमंत्रण?

Share this post

*देवभूमि न्यूज 24.इन*

💐💐💐💐💐💐💐💐

⭕श्राद्ध पक्ष में पितरों के तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्व बताया गया है. यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं बल्कि पूर्वजों के प्रति श्रद्धा, आभार और कृतज्ञता व्यक्त करने का जरिया भी है.

शास्त्रों में इसके विधान बहुत स्पष्ट रूप से बताए गए हैं, ताकि इस कर्म की शुद्धता बनी रहे और इसका वास्तविक फल प्राप्त हो.

इसी कारण मत्स्य पुराण और मनुस्मृति जैसे ग्रंथों में श्राद्ध से जुड़े आचरण नियमों का उल्लेख मिलता है. खासकर यह स्पष्ट किया गया है कि श्राद्ध को कभी भी भव्य आयोजन का रूप नहीं देना चाहिए और इसमें मित्रों को आमंत्रित कर भोजन नहीं कराना चाहिए. इन निषेधों के पीछे गहरा धार्मिक, दार्शनिक और व्यवहारिक कारण निहित है, जो श्राद्ध की पवित्रता और फलप्राप्ति से जुड़ा है.

⚜️मत्स्य पुराण में मिलता है जिक्र
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
मित्रों को श्राद्ध में क्यों नहीं बुलाना चाहिए, इस विषय में सम्पूर्णनंद संस्कृत विश्वविद्यालय और महर्षि महेश योगी वेद विज्ञान विश्व विद्यापीठ से जुड़े आचार्य हिमांशु उपमन्यु बहुत विस्तार से बताते हैं. उनका कहना है कि इसका मुख्य कारण मत्स्य पुराण के 16वें अध्याय के श्लोक संख्या 30 से 35 के बीच मिलता है.

यहां उल्लेख है कि बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए देव कार्य में दो, पितृ कार्य में भी दो या दोनों कार्यों में एक-एक ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. व्यक्ति धन आदि से कितना भी सम्पन्न क्यों न हो उसे पार्वण श्राद्ध का विस्तार नहीं करना चाहिए यानी कि इसे भव्य आयोजन में नहीं बदल देना चाहिए और लुभावने तरीके से नहीं करना चाहिए. इस तरह का निषेध इस कार्य की शुद्धता को बनाए रखने के लिए किया गया है.

⚜️मनुस्मृति में भी दर्ज है वजह
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
मनुस्मृति के तीसरे अध्याय में स्पष्ट शब्दों में लिखा हुआ है श्राद्ध में मित्रों को भोजन नहीं कराना चाहिए. इसके स्थान पर अन्य सत्कार करके मित्रता की रक्षा करनी चाहिए. श्लोक (139-140-141-1420 में तो यहां तक कहा गया है मित्रों को भोजन करने पर श्राद्ध का फल ही नहीं मिलता है. उस व्यक्ति को स्वर्ग की गति नहीं मिलती है. मित्रों के संग भोजन दान क्रिया करने पर वो पिशाच दान क्रिया कहलाती है और ऐसे श्राद्ध के लिए लिखा गया है वो ऊसर बोये गए बीज के समान हो जाता है.

⚜️विशेष परिस्थितियों में विद्वान मित्र को भी करा सकते हैं भोजन
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
इस कार्य में अगर विद्वान ब्राह्मण न मिले तो उसके स्थान पर विद्वान मित्र को भोजन कराया जा सकता है. इस पूरे प्रसंग से एक बात बहुत स्पष्ट हो जाती है कि श्राद्ध के नाम पर भीड़ जुटाना निर्रथक है. इससेध बचना चाहिए और श्राद्ध के शास्त्र में दिए गए विधान के अनुसार ही कार्य करना चाहिए.

       *🚩हरिऊँ🚩*