जौनसार-बावर: सिरमौर राज्य से जुड़ी सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक संक्रमण की कहानी

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  *देवभूमि न्यूज 24.इन*

हिमालय की गोद में बसे जौनसार-बावर क्षेत्र की पहचान आज उत्तराखंड के देहरादून ज़िले के हिस्से के रूप में होती है, परंतु इतिहास की परतों को उठाने पर यह क्षेत्र कहीं अधिक पुरानी और समृद्ध परंपराओं का वाहक नज़र आता है। जौनसार-बावर सिर्फ़ एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि सिरमौर राज्य की ऐतिहासिक सीमाओं, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और राजनीतिक परिवर्तनों का जीवंत दस्तावेज है।

सिरमौर राज्य से ऐतिहासिक संबंध
मध्यकालीन इतिहास में सिरमौर राज्य (जिसे उस समय सिरमौर रियासत कहा जाता था) की सीमाएँ आज के समझ से कहीं अधिक व्यापक थीं।
देहरादून और चकराता की ऊपरी घाटियाँ—जहाँ आज जौनसार-बावर स्थित है—कभी सिरमौर के प्रशासनिक और सांस्कृतिक प्रभाव में थीं।

इतिहासकारों की राय में
जौनसार-बावर क्षेत्र पर सिरमौर के राजपूत शासकों का प्रत्यक्ष अधिकार रहा,यहाँ के गाँव सिरमौर दरबार को कर देते थे,और सांस्कृतिक रूप से भी यह पूरा क्षेत्र सिरमौरी-यमुनी परंपराओं से गहराई से जुड़ा हुआ था।
यह संबंध तब तक चला जब तक औपनिवेशिक भारत में राजनीतिक नक्शा बदलना शुरू नहीं हुआ।

अंग्रेज़ी शासन का हस्तक्षेप और प्रशासनिक परिवर्तन
1829 वह वर्ष था जब अंग्रेज़ों ने देहरादून और उसकी पहाड़ी पट्टी पर अपना प्रशासनिक ढांचा मज़बूत किया।
अंग्रेजों ने सैन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण चकराता कैंटोनमेंट स्थापित किया और इस क्षेत्र को अलग प्रशासनिक इकाई के रूप में विकसित किया।
इसी प्रक्रिया मेंजौनसार-बावर को सिरमौर रियासत से अलग कर ब्रिटिश शासन में शामिल कर दिया गया
और इसे देहरादून ज़िले की चकराता तहसील में सम्मिलित कर दिया गया।
इस प्रकार, वह क्षेत्र जो सदियों तक सिरमौर का सांस्कृतिक-अभिन्न हिस्सा था, एक नए राजनीतिक ढाँचे में स्थानांतरित हो गया।

‘जौनसार-बावर’ नाम का अर्थ
इसे बावर जौंसार क्यों कहा जाता है?
इस क्षेत्र का नाम दो ऐतिहासिक-सांस्कृतिक समुदायों और भौगोलिक परंपराओं से मिलकर बना है

  1. जौनसार
    यह क्षेत्र का दक्षिणी, कम ऊँचाई वाला भाग है जहाँ खेती-बाड़ी, ग्रामीण बस्तियों और सांस्कृतिक गतिविधियों की घनत्व अधिक है।
    “जौनसार” शब्द स्थानीय जौंसारी जनजातीय संस्कृति से निकला है, जो आज भी क्षेत्र की पहचान है।
  2. बावर
    बावर शब्द का मूल अर्थ “ऊपरी इलाका” या “पार का प्रदेश” होता है।
    यह ऊँचाई वाले, अधिक दुर्गम हिस्सों के लिए प्रयोग होता रहा है, जो वर्ष के अधिकांश समय बर्फ़ से ढका रहता था।
    ऐतिहासिक दस्तावेजों में बावर को
    सीमांत क्षेत्र,कठोर जलवायु वाला इलाका,और पारंपरिक सामुदायिक ढाँचों वाला क्षेत्र बताया गया है।
    इन्हीं दो प्रमुख भौगोलिक-सांस्कृतिक भागों जौनसार और बावर को मिलाकर पूरे क्षेत्र को “जौनसार-बावर” कहा जाने लगा। कुछ स्थानों पर इसे “बावर-जौंसार” भी कहा जाता है, क्योंकि कभी प्रशासनिक रूप से बावर भाग अधिक प्रमुख माना जाता था।

सांस्कृतिक समानता जो आज भी सिरमौर से जोड़ती है
यद्यपि राजनीतिक रूप से यह क्षेत्र अब उत्तराखंड का हिस्सा है, परंतु जौनसार-बावर की संस्कृति आज भी सिरमौर के साथ अद्भुत समानता रखती है।
सिरमौर और जौनसार-बावर को एक साझा सांस्कृतिक धरोहर में बाँधती हैं।
आज भी इन दोनों क्षेत्रों के लोगों के बीच,रिश्तेदारी,मेलों में सहभागिता,
और देवपरंपराओं में गहरा संवाद देखा जाता है।
इतिहास मिटा नहीं, केवल बदला गया
जौनसार-बावर का इतिहास बताता है कि सीमाएँ बदल सकती हैं, शासक बदल सकते हैं, परंतु संस्कृति अपनी जड़ों से जुड़ी रहती है।
सिरमौर राज्य से इसका गहरा संबंध केवल एक प्रशासनिक अतीत नहीं है—
यह हिमालय की दो घाटियों की साझा स्मृति, साझा परंपराएँ और साझा पहचान का स्थायी प्रतीक है।

आज यह क्षेत्र उत्तराखंड का अभिन्न हिस्सा है, पर इसकी कहानी सिरमौर के इतिहास और पूरे हिमालय की सामाजिक संरचना को समझने की एक अनिवार्य कड़ी है।

संपादक
देवभूमि न्यूज 24.इन