सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी चंदे की स्कीम पर सरकार को क्या-क्या कहा, 10 बड़ी बातें

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देवभूमि न्यूज डेस्क
नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया और कहा कि ये संविधान द्वारा प्रदान की गई सूचना के अधिकार और बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है। दूरगामी परिणाम वाले इस ऐतिहासिक फैसले में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को छह वर्ष पुरानी योजना में दान देने वालों के नामों की जानकारी निर्वाचन आयोग को देने के निर्देश दिए गए। इसमें कहा गया कि जानकारी में यह भी शामिल होना चाहिए कि किस तारीख को यह बॉन्ड भुनाया गया और इसकी राशि कितनी थी। साथ ही पूरा विवरण छह मार्च तक निर्वाचन आयोग के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें..
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा की पांच जजों की संविधान पीठ ने योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अलग-अलग लेकिन सर्वसम्मत फैसले सुनाए।

इस फैसले को केन्द्र सरकर के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
पिछले साल 2 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन आयोग को SBI द्वारा साझा की गई जानकारी 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करनी चाहिए।
चीफ जस्टिस ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
पीठ ने कहा कि नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक गोपनीयता, संबद्धता का अधिकार भी शामिल है। फैसले में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और आयकर कानूनों सहित विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी अवैध ठहराया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि संबंद्ध बैंक चुनावी बॉन्ड जारी नहीं करेगा और एसबीआई 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड के ब्योरे निर्वाचन आयोग को देगा।
2017 के आम बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस बारे में जानकारी दी थी। जेटली ने कहा था कि राजनीतिक दलों को अज्ञात दानदाताओं से चंदा मिलता है। जो कैश में मिलता है। इसलिए भारत में राजनीतिक फंडिंग को साफ-सुथरा करने के लिए प्रयास करने होंगे।


गौरतलब है कि चुनावी बॉन्ड योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। सरकार ने इसे पारदर्शिता लाने वाले प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था।
पीठ ने पिछले साल 31 अक्टूबर को कांग्रेस नेता जया ठाकुर, सीपीएम और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर याचिकाओं सहित चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी। वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कॉमन कॉज और एडीआर की तरफ से दलीलें दी थीं।
चुनावी बॉन्ड योजना के प्रावधानों के अनुसार इसे भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है।
कोर्ट ने कई मुद्दों पर जिरह सुनने के बाद फैसला सुनाया। इसमें सूचना के अधिकार के उल्लंघन से लेकर कालेधन को रोकने के मुद्दे पर भी विचार किया।