श्री राम मंदिर अंदौरा-गगरेट में श्री मद्भागवत महापुराण कथा के तीसरे दिन का धार्मिक हर्षोल्लास।
देवभूमि न्यूज डेस्क
अंदोरा-गगरेट
आज तीसरे दिन की श्री मद्भागवत महापुराण कथा में धार्मिक हर्षोल्लास के चलते समस्त जिला ऊना स्थित श्री राम मंदिर अंदौरा-गगरेट सन्निकट सोमभद्रा-स्वां नदी बाजार में भक्ति रस संचार ने समूचे क्षेत्र को श्री वृन्दावन धाम परिवर्तित कर दिया है। आज कथा व्यासपीठ से आचार्य श्री गणेश दत्त शास्त्री जी ने भाव पक्ष की प्रधानता के साथ साथ एक से बढ़कर एक भजन सत्संग सुनाकर श्रोताओं को झूमने पर बिवश कर दिया।”श्री वृन्दावन की लीला! नहीं जाने कोई चेला!! वृंदावन की महिमा अपरम्पार,रटे जा श्री राधे राधे।।
समूचा पंडाल भक्ति सागर में हिलोरें लेने लगा।
तीसरे दिन की कथा प्रसंग में श्री सुखदेव जी राजा परीक्षित को कह रहे हैं कि “हे राजन , भगवान जी को भाव की पवित्रता अति प्रिय है। युग चक्र,जग चक्र और काल चक्र एक साथ घुमाने वाले अखिलात्मा श्री कृष्ण जी पांडवों और कौरवों के मध्य महाभारत के युद्ध को रोकने की गर्ज से मध्यस्थ बनकर राजा दुर्योधन के राज दरवार में उपस्थित हुए। श्री कृष्ण जी ने पांच भाई पांडवों को पांच गांव देने का पुरजोर प्रस्ताव राज सभा में शांति दूत बनकर रखा। दुर्योधन ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया और कर्कश, क्रोधित होकर युद्ध के बिना सुई की नोक के बराबर भी भूमि देने से इंकार कर दिया।
भगवान श्री कृष्ण को दुर्योधन ने आग्रह किया कि माता गांधारी ने छप्पन प्रकार के भोग तैयार किए हैं। आप भोजन के लिए चलें!
श्री कृष्ण जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हे दुर्योधन! सर्वप्रथम मनुष्य जीवन में भूख लगने पर ही भोजन करता है तथापि दूसरे खिलाने वाला का भाव भी श्रद्धापूर्वक हो!!
इसलिए हे दुर्योधन, पहले तो मेरे को भूख नहीं है, दूसरे दुर्योधन तेरा भाव भी भोजन करवाने की श्रद्धा का तो कदापि नहीं है।
श्री कृष्ण भगवान जी विदुराणी के घर गए और वहां पर साग और कदलीदल का भावपूर्ण भोजन का भोग लगा लिया।
इसी तरह भावात्मक पक्ष की एक उपकथा का वृत्तांत सुनाते हुए व्यासपीठ से आचार्य श्री गणेश जी ने श्रोताओं को भगवान शंकर और माता पार्वती द्वारा निर्मित एवं संचालित सोने की लंका का शुभारंभ करवाने हेतु वेद वेत्ता प्रकांड विद्वान ब्राह्मण रावण को हवन यज्ञ हेतु आमंत्रित किया।
रावण की कुबुद्धि सोने की लंका को प्राप्त करने का लोभ भाव उत्पन्न हो गया कि येन केन प्रकारेण यह सोने की लंका उसे मिल जाए। जब वेदपाठी ब्राह्मण रावण ने यज्ञ पूर्ण किया तो शंकर भगवान ने रावण को दक्षिणा मांगने को कहा। रावण ने कहा कि प्रभु जो दक्षिणा चाहता हूं ? वह मिल जायेगी? शंकर भगवान ने तथास्तु कहकर अभयदान दिया। उधर देवी पार्वती जी के मन में यह भाव उत्पन्न हुआ कि कहीं रावण सोने की लंका ही दक्षिणा में ना मांग ले!
सोने की लंका तो बड़े ही कठिन परिश्रम से साकार किया गया था।
रावण ने सोने की लंका को ही दक्षिणा के स्वरूप में भगवान शंकर जी से प्राप्त कर लिया।
वहीं रावण का लोभ भाव लंका दहन का कारण बन गया था।