देवभूमि न्यूज 24.इन
(चवालीसवां अध्याय
व्यास जी का जन्म… (भाग 1). शौनक जी बोले- हे सूत जी! आप मुझे मुनि वेद व्यास के जन्म की कथा सुनाइए। तब शौनक जी के प्रश्न का उत्तर देते हुए सूत जी बोले- हे शौनक जी! एक दिन की बात है, पराशर जी तीर्थ यात्रा करते हुए यमुना तट पर आए। उस समय मल्लाह भोजन कर रहा था। इसलिए उसने अपनी पुत्री मत्स्यगंधा को उन्हें नाव द्वारा यमुना पार कराने का आदेश दिया। मत्स्यगंधा पराशर जी को नाव से यमुना पार ले जा रही थी। उसकी सुंदरता देखकर पराशर जी उस पर मोहित हो गए। जैसे ही उन्होंने यमुना पार की पराशर मुनि ने उसका हाथ पकड़ लिया। तब मत्स्यगंधा ने मुनिवर से कहा कि आप रात का इंतजार करें। पराशर जी ने अपने योग से दिन को रात कर दिया। दोनों का मिलन हुआ परंतु मत्स्यगंधा चिंतित थी। तब पराशर जी ने उससे वर मांगने को कहा।
मत्स्यगंधा बोली- मुनिवर! मेरे इस कर्म को मेरे माता-पिता कोई भी न जान सकें। मेरा कन्या धर्म भी न जाए और मुझे आपके समान तपस्वी और शक्तिमान पुत्र की प्राप्ति भी हो। तब उसके वचन सुनकर पराशर मुनि बोले- देवी! जैसा आप चाहती हैं वैसा ही होगा और आज से आप ‘सत्यवती’ नाम से प्रसिद्ध होंगी। आपके गर्भ से भगवान श्रीहरि विष्णु का अंश उत्पन्न होगा। यह कहकर मुनिवर चले गए। नियत समय पर सत्यवती ने सूर्य के समान महातेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। पुत्र माता की आज्ञा लेकर तपस्या करने चला गया और जाते समय उसने माता से कहा कि कोई भी कष्ट पड़ने पर मुझे अवश्य याद करना।
सत्यवती अपने घर लौट आई। व्यास जी तपस्या में लीन हो गए। वेदों की शाखाओं का अध्ययन करने से वे वेदव्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए। फिर वे तीर्थ स्थानों के भ्रमण के लिए निकल पड़े। एक बार शिवलिंग का दर्शन करने के पश्चात उनके मन में विचार आया कि कोई ऐसा सिद्धिदायक लिंग हो जिसकी आराधना और भक्ति करने से सब विद्याएं प्राप्त हो जाएं और अभीष्ट फलों की प्राप्ति हो। यही सोचकर वे ध्यानमग्न हो गए। तभी उन्हें ज्ञात हुआ कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले अतिमुक्त महाक्षेत्र में मध्येश्वर लिंग स्थित है।
वेदव्यास जी ने गंगा में स्नान करके व्रत आरंभ कर दिया। उन्होंने भोजन त्याग दिया। वे पहले फलाहारी रहकर पूजन करने लगे। फिर उन्होंने सिर्फ जल ही ग्रहण किया। फिर उन्होंने सिर्फ हवा को ग्रहण करते हुए अपना पूजन आरंभ किया। तत्पश्चात उन्होंने निराहारी रहकर भगवान शिव की उत्तम तपस्या की। उनकी इस दुस्सह साधना से शिवजी प्रसन्न हुए और वेदव्यास जी को दर्शन दिया। देवाधिदेव महादेवजी को साक्षात अपने सामने पाकर वेदव्यास जी उनकी स्तुति करने लगे। वे बोले- हे देवाधिदेव! कल्याणकारी शिव! आप मन और वाणी से अगोचर हैं। वेद भी आपकी महिमा को पूर्ण रूप से नहीं जानते। आप ही सृष्टि के रचनाकर्ता, पालनकर्ता और संहारकर्ता हैं। हे सर्वशक्तिमान ईश्वर! आप ही जन्म-मरण, देश, कुल आदि से रहित हैं। आप ही त्रिलोक के स्वामी हैं। इस प्रकार व्यास जी ने शिवजी की स्तुति की। प्रसन्न होकर शिवजी बोले- हे व्यास जी! तुम मनचाहा वर मांगो। तब व्यास जी बोले-स्वामी! आप तो सर्वज्ञ सर्वेश्वर हैं। आपसे कुछ भी छिपा नहीं है।
तब त्रिलोकीनाथ भगवान शिव बोले- मुनिवर ! मैं तुम्हारे कंठ में स्थित होकर तुम्हारी इच्छा के अनुसार इतिहास एवं महापुराणों की रचना करूंगा। तुम्हारे द्वारा प्रयोग में लाए गए स्तुति अष्टक का जो भी शिवलिंग के सामने बैठकर एक वर्ष तक तीनों काल में मेरी स्तुति करेगा उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी। यह कहकर महादेवजी अंतर्धान हो गए।
भगवान शिव की कृपा से वेदव्यास जी ने ब्रह्म, पद्म, विष्णु, शिव, भागवत, भविष्य, नारद, मार्कण्डेय, अग्नि, ब्रह्मवैवर्त, लिंगवाराह, कूर्म, मत्स्य, गरुड़, बामन, ब्रह्माण्ड आदि अठारह महापुराणों की रचना की। ये सभी पुराण पुण्य और यश देने वाले हैं। इनको श्रद्धापूर्वक भक्तिभावना से पढ़ने अथवा सुनने से मुक्ति प्राप्त होती है तथा समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
क्रमशः शेष अगले अंक में…
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान