प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है
देवभूमि न्यूज डेस्क
नई दिल्ली
राष्ट्रवादी विद्वानों ने पहले हल्ला मचाया कि नरेन्द्र मोदी सरकार आरिफ मोहम्मद खान को राष्ट्रपति बनायेगी, लेकिन जब भाजपा ने आदिवासी समाज की द्रौपदी मुर्मू को मैदान में उतार दिया तो बाद में यही लोग कहने लगें कि अब उपराष्ट्रपति का पद मुख्तार अब्बास नकवी को दिया जायेगा। लेकिन कल नरेन्द्र मोदी जी ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाते हुए उन फर्जी कयासों पर विराम लगा दिया है।

जो भी तथाकथित बुद्धिजीवी यह मानकर चल रहे थें कि आरिफ मोहम्मद खान जैसे राष्ट्रवादी मुसलमान को नरेन्द्र मोदी राष्ट्रपति बना सकते हैं वो अभी न नरेन्द्र मोदी को समझ पाये हैं और न राष्ट्रपति के संवैधानिक अधिकारों और उसकी विशेष स्थिति की समझ रखते हैं। यदि एकबार राष्ट्रपति बनने के बाद हामिद अंसारी की तरह किसी के भीतर का इस्लाम जाग गया तो वह अकेले सरकार को बहुत परेशान कर सकता है।
यदि राष्ट्रपति कुछ न करे केवल सरकार के किसी बिल पर सख्ती से टिप्पणी भर कर दे कि यह बिल अल्पसंख्यकों के साथ भेदभावपूर्ण है, बस इसी पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नरेन्द्र मोदी बुरी तरह दबाव में आ जायेंगे। भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति यदि सरकार के खिलाफ कुछ बोल भी दिया तो यह वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को धक्का लगानेवाला होगा और इसके दूरगामी परिणाम निकलेंगे। राष्ट्रपति को महाभियोग लगाकर हटाने की प्रक्रिया इतनी कठिन है कि भाजपा को नाकों चने चबाना पड़ जायेगा और ऊपर से दुनियाभर में नरेन्द्र मोदी की थू-थू भी हो जायेगी, उसके बाद भी गारंटी नहीं है कि भाजपा महाभियोग के लिए आवश्यक आंकड़े जुटा ही लेगी।
यही स्थिति उपराष्ट्रपति के मामले में है। यदि कोई बिल लोकसभा में पास हो गया और उपराष्ट्रपति ने राज्यसभा में अड़ंगा लगा दिया तो सब सत्यानाश हो जायेगा। हामिद अंसारी ने एक उपराष्ट्रपति के तौर पर भाजपा को राज्यसभा में बहुत परेशान किया। यदि राज्यसभा में विपक्षी जरा भी शोरगुल करतें तो हामिद अंसारी बहाना बनाकर आगे कार्यवाही ही नहीं होने देते थें कि जबतक पूरी तरह सदन शान्त नहीं हो जाता आगे कोई कार्यवाही नहीं होगी।
इन सबको देखते हुए नरेन्द्र मोदी कोई जोखिम मोल नहीं ले सकतें। अरे, जो अपने सगे लाल कृष्ण आडवाणी जी पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें वृद्धावस्था में राष्ट्रपति बनाकर एक सम्मानजनक विदाई दे दें वो भला किसी शांतिप्रिय पर क्या भरोसा करेंगे? भाजपा ने शांतिप्रिय मुख्तार अब्बास से अल्पसंख्यक मंत्रालय तक छीनकर स्मृति ईरानी को दे दिया। इन सबसे यही पता चलता है कि नरेन्द्र मोदी को शांतिप्रियो पर रत्तीभर भरोसा नहीं है।