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वैष्णव-खण्ड [ भूमिवाराहखण्ड या वेंकटाचल-महात्म्य ]〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️सुवर्णमुखरी नदी के तीर्थों का वर्णन, भगवान् विष्णु की महिमा, प्रलयकाल की स्थिति तथा श्वेतवाराहरूप में भगवान् का प्राकट्य…(भाग 1)〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️अर्जुन ने पूछा- मुने ! सुवर्णमुखरी नदी में किन- किन पवित्र नदियों का संगम हुआ है तथा इसमें कहाँ स्नान करने से समस्त पाप कट जाने के कारण मनुष्य यमराज के भय को नहीं प्राप्त होते हैं?
भरद्वाजजी बोले-कुन्तीनन्दन ! अगस्त्य पर्वत से जहाँ पहले-पहल महानदी सुवर्णमुखरी पृथ्वी पर उतरी है, उस तीर्थ में स्नान करके मनुष्य कृतार्थ हो जाता है। वह पावन तीर्थ त्रिभुवन में अगस्त्यतीर्थ के नामसे प्रसिद्ध है। उस तीर्थ में जो प्रयत्नशील साधक अपनी इन्द्रियों को संयम में रखते हुए स्नान करते हैं, वे सम्पूर्ण फल प्राप्त करते हैं। वहाँ सब लोगों को आनन्द देने वाले अगस्त्य मुनि के द्वारा स्थापित किये हुए भगवान् शिव अगस्त्येश्वर के नाम से प्रसिद्ध हैं। उस महानदी में स्नान करके जो लोग अगस्त्येश्वर की पूजा करते हैं, उन्हें दस अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होता है।
अगस्त्यतीर्थ से ईशानकोण की ओर एक कोस की दूरी पर तीन तीर्थ हैं, जो देवतीर्थ, ऋषितीर्थ तथा पितृतीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हैं। वहीं पर अगस्त्यमुनि ने देवताओं, ऋषियों तथा पितरों का पूजन किया था। जो लोग स्नान करके उन तीर्थों में तर्पण करते हैं, वे तीनों ऋणों से मुक्त होकर अक्षय स्वर्ग को प्राप्त होते हैं। वहाँ से पूर्व-उत्तरकी ओर दो योजन की सीमा में वेणा नामवाली महानदी सुवर्णमुखरी में मिली है। इन दोनों नदियोंक संगम में विधिपूर्वक स्नान करनेवाले मनुष्य दस अश्वमेध यज्ञोंका फल प्राप्त करते हैं। वेणासे मिलकर परम पवित्र सुवर्णमुखरी नदी पर्वतोंके दुर्गम मार्गसे उत्तरवाहिनी होकर गयी है। फिर पर्वतोंके बीचसे होकर विषम मार्गसे आगे बढ़ती हुई चार योजन दूर जाकर प्रकाशमें
आयी है। वहाँ से पूर्व डेढ़ योजन की दूरी पर उदक्कल नामक मनोहर स्थानमें यह महानदी पूर्ववाहिनी हो गयी है। वहीं भगवान् शंकरका अगस्त्येश्वर नामसे प्रसिद्ध एक और शिवलिंग है, जो स्मरणमात्रसे मनुष्योंके समस्त पापोंका निवारण करता है।
जो मनुष्य उस महानदीमें स्नान करके इन्द्रियोंको संयममें रखते हुए अगस्त्य-मुनिके द्वारा स्थापित भगवान् पार्वतीनाथका दर्शन करते हैं, वे अनेक जन्मोंकी उपार्जित पापराशिको दूर करके अनन्त कालतक स्वर्गलोकमें सुख भोगते हैं। वहाँसे तीर्थसमुदायसे सुशोभित सुवर्णमुखरी नदी पुनः आधे योजनतक उत्तरकी ओर गयी है। वह प्रदेश हिन्ताल, ताल और शाल आदि वृक्षोंसे बड़ा मनोहर प्रतीत होता है। वहीं व्याघ्रपदा नामवाली नदी सुवर्णमुखरी नदीमें मिली है। उन दोनों नदियोंके संगममें स्नान करनेवाले श्रेष्ठ मनुष्य दस अश्वमेध यज्ञोंका पूर्ण फल प्राप्त करते हैं। व्याघ्रपदा नदीके तटपर शंखतीर्थ सुशोभित है, जो सब पापोंका नाश करनेवाला है। अर्जुन ! वहाँ शंखेश्वर नामसे प्रसिद्ध भगवान् शिव विराजमान हैं। जो उस तीर्थमें भलीभाँति स्नान करके भगवान् शंकरका दर्शन करते हैं, वे दस अश्वमेध यज्ञोंका फल प्राप्त करके देवलोकमें जाते हैं। व्याघ्रपदासंगमसे एक योजन भूमि आगे जाकर शुभ एवं निर्मल जल बहानेवाली मुनीन्द्रसेवित सुवर्णमुखरी नदी वृषभाचलके समीप पहुँची है।
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान