श्री शिव महापुराण श्रीउमा संहिता (प्रथम खंड)✍️

Share this post

देवभूमि न्यूज 24.इन

〰️(अड़तालीसवां अध्याय

〰️सरस्वती का प्राकट्य… (भाग 1) राजा ने कहा-चण्ड-मुण्ड और रक्तबीज के मर जाने पर शुभ-निशुंभ ने क्या किया? ऋषि बोले- जब शुभ-निशुंभ को पता चला कि चण्ड-मुण्ड और रक्तबीज को देवी ने मार दिया है तब वे स्वयं अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर युद्ध भूमि की ओर चल दिए। जब देवी कौशिकी ने देखा कि शुंभ और निशुंभ अपनी सेना के साथ युद्ध करने आ रहे हैं तो उन्होंने घण्टा बजा दिया। इस ध्वनि को सुनकर देवी का सिंह गर्जना करने लगा। देवी ने भी धनुष हाथों में लेकर बाणों की वर्षा आरंभ कर दी। जब शुंभ और निशुंभ ने देवी कौशिकी के अदभुत रूप-सौंदर्य को देखा तब देवी को देखकर वे बोले- हे सुंदरी! आप इस कोमल शरीर के साथ युद्ध करेंगी? उनकी बात सुनकर देवी ने अत्यंत क्रोधित होकर बाण, त्रिशूल एवं परशु से एक साथ उन पर आक्रमण आरंभ कर दिया। देखते ही देखते युद्ध क्षेत्र में रक्त की नदियां बह निकलीं। दैत्य सेना देवी के प्रहारों के सम्मुख फीकी पड़ने लगी। दैत्य इधर-उधर भागने लगे।

अपनी विशाल सेना को इस प्रकार भयभीत होकर इधर-उधर भागते हुए देखकर निशुंभ देवी के सम्मुख जाकर बोला- देवी! यदि युद्ध करना ही है तो मुझसे करो। बेचारे सिपाहियों को क्यों मार रही हो? यह कहकर निशुंभ ने देवी पर बाण वर्षा शुरू कर दी। देवी ने भी उत्तर में बाण वर्षा आरंभ कर दी। उन्होंने अपने बाणों से निशुंभ के सभी अस्त-शस्त्र काट दिए। तब उन्होंने विष बुझे बाणों से निशुंभ को मार गिराया।

अपने भाई निशुंभ को इस प्रकार देवी के हाथों मरते देखकर शुंभ स्वयं देवी से युद्ध करने आगे आया। उसे सामने देखकर चण्डिका देवी ने भयानक अट्टहास किया जिसे सुनकर दैत्य सेना भयभीत हो गई। तब शुभ ने प्रज्वलित शक्ति से देवी पर आक्रमण किया। देवी ने अपने बाणों से उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए और हाथ में त्रिशूल लेकर उसे शुंभ की छाती में घोंप दिया। तत्पश्चात घायल शुभ देवी को मारने के लिए दौड़ा परंतु देवी ने चक्र से उसका सिर काट दिया। यह देखकर अन्य दैत्य पाताल लोक को चले गए।

क्रमशः शेष अगले अंक में…
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान