✍️देवभूमि न्यूज 24.इन
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वैष्णव-खण्ड [ भूमिवाराहखण्ड या वेंकटाचल-महात्म्य ]
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सुवर्णमुखरी नदी के तीर्थों का वर्णन, भगवान् विष्णु की महिमा, प्रलयकाल की स्थिति तथा श्वेतवाराहरूप में भगवान् का प्राकट्य…(भाग 3)
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भरद्वाजजी बोले-कुन्तीनन्दन ! पूर्वकाल में भागीरथी के तटपर यज्ञदीक्षापरायण तथा विशुद्ध ज्ञान से विभूषित महात्मा राजा जनक से वामदेवजी ने जो पापनाशक कथा कही थी, वह भगवान् विष्णु के कीर्तन से युक्त होने के कारण सबको पवित्र करने वाली है। वही कथा अब मैं तुम्हें सुनाऊँगा। भगवान् नारायण ही समस्त प्राणियों के आदिकारण हैं। सम्पूर्ण विश्व उन्हीं का रूप है, वे जगत् के स्रष्टा हैं, उनका स्वरूप चिन्मय तथा निरंजन है।

उनके सहस्रों मस्तक, सहस्रों नेत्र और सहस्रों चरण हैं। उन्हीं के तेज से यह सम्पूर्ण जगत् प्रकाशित होता है। उनसे बढ़कर तेज, उनसे बड़ा तप, उनसे बड़ा ज्ञान, उनसे बड़ा योग तथा उनसे बड़ी विद्या भी नहीं है। वे भगवान् श्रीहरि सदा समस्त प्राणियों में विद्यमान हैं। समस्त जीव उन्हीं में सुखपूर्वक निवास करते हैं। वे ही यज्ञ, यजमान और यज्ञ के खुक्-सुवा आदि साधन हैं। वे ही फल हैं, वे ही फलदाता हैं और वे ही सबके प्राप्त करनेयोग्य परमगति हैं। हरि, सदाशिव, ब्रह्मा, महेन्द्र, परम तथा स्वराट् आदि सभी नाम उन सर्वेश्वर विष्णुके ही पर्याय कहे गये हैं। जो एकाग्रचित्त होकर परमात्मा नारायणके इस माहात्म्यका अनुसन्धान करता है, वह पुनः संसारमें जन्म नहीं लेता। भगवान् विष्णु चिदानन्दस्वरूप, सबके साक्षी, निर्गुण, उपाधिशून्य तथा नित्य होते हुए भी स्वेच्छासे भिन्न-भिन्न अवस्थाओंको अंगीकार करते हैं। वे पवित्रोंमें परम पवित्र हैं,

निराश्रितोंकी परम गति हैं, देवताओंके भी देवता हैं तथा कल्याणमय वस्तुओंमें भी परम कल्याणस्वरूप हैं। बोध्य पदार्थोंमें एकमात्र वे ही बोध्य हैं। ध्येय तत्त्वोंमें वे ही सर्वोत्तम ध्येय हैं। विनयोंमें सबसे अधिक विनय और नय भी वे ही हैं। वे सम्पूर्ण तेजोंको उत्पन्न करनेवाले तेज हैं, तपस्याओंमें उच्चकोटिकी तपस्या हैं तथा सब प्राणियोंके परम आधार हैं। जनार्दन भगवान् विष्णुका आदि और अन्त नहीं है। उनके स्वरूपको इदमित्थम् रूपसे जान लेनेमें ब्रह्मा आदि भी मूढ हैं। वे अजन्मा होकर भी जन्म लेते हैं, सर्वात्मा होकर भी शत्रुओंका वध करते हैं तथा स्वतन्त्र होकर भी अपने भक्तोंके परतन्त्र रहते हैं। सर्वज्ञ भगवान् गरुडध्वज ही कर्मोंके साक्षी हैं। मुनिलोग एकाग्रचित्त होकर उनके स्वरूपकी खोज करते हैं। भगवान् की चतुर्व्यह नाम से प्रसिद्ध चार मूर्तियाँ हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं- संकर्षण, वासुदेव, प्रद्युम्न तथा अनिरुद्ध। पहले प्रणव का उच्चारण हो, तत्पश्चात्
भगवान् के प्रकाशमान हृदयस्वरूप नमः पदका उच्चारण हो…
क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
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