संक्षिप्त श्रीस्कन्द महापुराण

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✍️देवभूमि न्यूज 24.इन
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वैष्णव-खण्ड [ भूमिवाराहखण्ड या वेंकटाचल-महात्म्य ]
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सुवर्णमुखरी नदी के तीर्थों का वर्णन, भगवान् विष्णु की महिमा, प्रलयकाल की स्थिति तथा श्वेतवाराहरूप में भगवान्‌ का प्राकट्य…(भाग 4)
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उसके बाद भगवान् और वासुदेव ये दो पद हों, इनसे जो मन्त्र बनता है, वह (ॐ नमो भगवते वासुदेवाय) मन्त्र भगवान्‌के स्वरूपका प्रकाशक है। जो प्रतिदिन एकाग्रचित्त होकर इस मन्त्रराजका जप करता है, वह भगवान् विष्णुकी कृपासे समस्त सिद्धियोंका भाजन होता है। आपत्तियोंका निवारण और सम्पत्तियोंकी प्राप्ति करानेवाले भोग-मोक्षप्रदाता श्रीहरिने कल्पके आदिमें जिस प्रकार प्राणियोंकी सृष्टि की है, वह सुनो।

सृष्टिका चिन्तन करते समय भगवान् विष्णुका जो रजोगुणयुक्त तेजोमय स्वरूप प्रकट हुआ, वह ब्रह्माके नामसे विख्यात हुआ। उन्हीं भगवान्‌के मुखसे त्रिभुवनके स्वामी इन्द्र और अग्नि उत्पन्न हुए। उनके नित्य करुणापूर्ण शीतल हृदयसे चन्द्रमा प्रकट हुए, जो जल, समस्त ओषधिवर्ग तथा ब्राह्मणोंके रक्षक हैं। भगवान्‌के नेत्रोंसे सम्पूर्ण विश्वको प्रकाशित करनेवाले तेजोनिधि सूर्य उत्पन्न हुए, जो जाड़ा, गरमी और वर्षाकालके कारण हैं। श्रीहरिके प्राणोंसे समस्त जगत्‌के प्राणस्वरूप महाबली वायुका प्रादुर्भाव हुआ, जो ग्रह, नक्षत्र वे ही बडवानलका रूप धारण करके समुद्रों का जल पीते हैं और प्रलयकालमें अपने भीतर विलीन हुए समस्त जगत्‌की पुनः कल्पके आरम्भमें सृष्टि करते हैं। सूर्य और चन्द्रमाका रूप धारण करके वे ही अन्धकारका नाश करते और सबको कालके अनुसार धर्ममें लगाते हैं। इस प्रकार वे सब जीवोंकी जीवनवृत्ति चलाते हैं। फिर कल्पान्तके समय समस्त संसारको अपने उदरमें रखकर लीलासे शिशुकी आकृति धारण किये एकार्णवके जलमें वटके पत्रपर शयन करते हैं। इसके बाद प्रचण्ड नागराजके शरीरकी सुखशय्यापर सोकर केवल भगवती लक्ष्मीजीके साथ योगनिद्राका आश्रय लेते हैं। यह सब अपनी इच्छाके अनुसार योगशक्तिको प्रवृत्त करनेवाले भगवान् मुकुन्दकी लीला है।

उन परमेश्वरको यथार्थ रूपसे कोई भी नहीं जानता। जब-जब धर्मकी हानि होती और अधर्म बढ़ने लगता है। अथवा जब-जब देवताओंको बड़ी भारी पीड़ा भोगनी पड़ती है और जब- जब अपने भक्त साधु पुरुषोंपर भय उत्पन्न करनेवाली भारी विपत्ति अनिवार्यरूपसे आ जाती है, तब- तब कौतुकवश उस अवसरके अनुकूल रूप धारण करके भगवान् शीघ्र ही अधर्मका निवारण और जगत्का कल्याण करते हैं। स्वयं ही रजोगुणका आश्रय लेकर वे ब्रह्माके नामसे प्रसिद्ध हो सृष्टि करते हैं, सत्त्वगुणमें स्थित हो हरि-नाम धारण करके सारे संसार के पालन-पोषण का भार ढोते हैं और तमोगुणी वृत्ति को अपनाकर हर-नामसे प्रसिद्ध हो सबका संहार करते हैं। भगवान् मधुसूदन की महिमा को यथार्थ रूपसे जानने वाला कोई नहीं है।

क्रमशः…
शेष अगले अंक में जारी
✍️ज्यो:शैलेन्द्र सिंगला पलवल हरियाणा mo no/WhatsApp no9992776726
नारायण सेवा ज्योतिष संस्थान