पंजाब:जालंधर भाजपा में आखिर क्यों उठ रहे हैं बगावती सुर ?
देवभूमि न्यूज डेस्क
पंजाब/जालंधर
कहां पंजाब में भारतीय जनता पार्टी के नेता सरकार बनाने का दावा कर रहे थे लेकिन आज पंजाब के कई जिलों में भाजपा के नेता पार्टी की तरफ से ही लगाए गए अध्यक्षों के खिलाफ मोर्चे खोलने लग गए हैं।
शुक्रवार को जालंधर में पार्टी अध्यक्ष सुशील शर्मा के ऊपर गंभीर आरोप लगाते हुए जालंधर वैस्ट विधानसभा क्षेत्र के चार पार्षदों, दो उपाध्यक्षों तथा दो मंडल अध्यक्षों ने अलविदा कह दिया। वैसे भाजपा में अक्सर पार्टी की तरफ से तैनात अध्यक्ष के खिलाफ खुल कर विरोध कम ही होता है लेकिन जालंधर में जो हुआ, उसने भाजपा के अंदर हड़कम्प मचा दिया है। बड़ा सवाल जो हर वर्कर के ज़हन में है कि आखिर इन अहम पदों पर बैठे लोगों ने एकाएक क्यों पार्टी को छोड़ दिया। कभी रैलियों में बसें लेकर जाने वाले, कभी बड़े नेताओं को चाय-पानी खुद पिलाने तथा बैठकों में दरियां तक बिछाने वाले लोग पार्टी से दूर क्यों हो गए, यह एक बड़ा यक्ष प्रशन सामने आ खड़ा हुआ है। जिसके लिए पार्टी के अध्यक्ष ही नहीं प्रदेश की पूरी टीम जिम्मेदार है।
नाराज क्यों हैं नेता
जालंधर भाजपा में जिन उक्त नेताओं ने इस्तीफे दिए हैं, उनमें से अधिकतर पार्टी की तरफ से उनके साथ स्टैंड न लेने से दुखी हैं। पार्षद श्वेता धीर से लेकर विनीत धीर, सौरभ सेठ तक जैसे नेता भाजपा में होने के कारण पुलिस में दर्ज हुए मामलों की तारीखें भुगत रहे हैं। जबकि पार्टी ने कभी भी उनके लिए स्टैंड नहीं लिया तथा विरोध नहीं जताया। पार्षद वीरेश मिंटू को विधानसभा चुनावों से पहले पैरालिटिक अटैक आया जिसके कारण वह उचित ढंग से चल व बोल नहीं पा रहे थे। वैस्ट की सीट हारने का भी ठीकरा उन पर फोड़ा गया। पार्षद पति अमित संधा के पिता किरपाल सिंह बूटी करीब दो साल से बीमार हैं लेकिन कोई पार्टी का नेता उनका हाल जानने नहीं गया। ऐसे में जिस पार्टी के लिए वर्कर काम कर रहा है, उस पार्टी ने स्टैंड ही नहीं लेना, उनके दुख सुख में शरीक नहीं होना तो शायद वहां पर रहने का उक्त नेताओं को कोई लाभ नहीं लगा और वह पार्टी से बाहर आ गए।
क्यों हुआ सुशील शर्मा का विरोध
जालंधर में अध्यक्ष सुशील शर्मा जो खुद पार्षद हैं, पर समय-समय पर अपने हिसाब से पार्टी चलाने के आरोप दबी जुबान में लगते रहे हैं। शुक्रवार दोपहर बाद तक किसी ने कुछ नहीं कहा था लेकिन इस्तीफों के कारण के तौर पर सुशील शर्मा का रवैया जिम्मेदार बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि सुशील शर्मा न तो नेताओं को बैठकों की जानकारी देते थे तथा न ही बैठक में कई नेताओं के आने पर उन्हें मान सम्मान देते थे। यहां तक कि कई वर्करों और नेताओं पर तो चुनाव हरवाने के भी आरोप लगाए जा रहे थे। इसके कारण पार्टी के अंदर घुटन बढ़ गई थी और इस्तीफे देकर उक्त नेताओं ने खुद को सुशील शर्मा के रवैये से आजाद कर लिया।
कहां चूक हो गई पार्टी से
जालंधर में भाजपा के पास कितने ही ऐसे नेता हैं जिनका पार्टी के प्रति दशकों का समर्पण है। बूथ सदस्य से लेकर कितने ही नेता मंडल स्तर तक पहुंच गए। ऐसे किसी भी जमीन से उठे नेता को अध्यक्ष न बना कर ए.बी.वी.पी. से आए सुशील शर्मा को पार्टी ने कमान सौंप दी। यहां तक कि उनके पास जमीनी स्तर पर पार्टी में काम करने का कम ही अनुभव था। प्रदेश के पार्टी के एक बड़े नेता के करीबी होने के सुशील शर्मा को फायदा मिला और यहीं पर पार्टी से चूक हो गई।
अब आगे क्या होगा
पंजाब के जालंधर में नगर निगम से चुनाव होने वाले हैं लेकिन उससे पहले जिस तरह से पार्षदों और अन्य नेताओं ने इस्तीफे दिए हैं, उससे यह बात साफ है कि आने वाला समय जालंधर भाजपा के लिए कोई बेहतर नहीं है। यह नहीं कि इन नेताओं के इस्तीफे के बाद सब शांत हो गया। बल्कि यह तूफान के आने से पहले की शांति है जो किसी भी समय बड़े बवंडर का कारण बन सकती है। कई नेता अभी और भी हैं जो पार्टी के कई बड़े पदाधिकारियों के रवैये से खुश नहीं हैं।